2013 Kedarnath Flood Story: साल 2013 में केदारनाथ पर कुदरत ने ऐसा कोहराम मचाया जिसकी क्षति पूर्ति आजतक नहीं हो पाई है। जिस जिस ने मौत के उस भयानक मंजर को देखा वह आज भी याद करके सिहर उठता है। आपदा (Kedarnath Disaster) को आये हुए भले ही 6 साल बीत चुके हैं। लेकिन उस दर्दनाक हादसे से गुजरे लोगो की आप बीती सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते है।
Kedarnath Flood Video
16 जून 2013, दिन रविवार को केदारनाथ (Kedarnath Dham) में पहली बार बाढ़(Flood) आयी थी और कुदरत ने अपनी ऐसी विनाश लीला दिखाई जिसकी भरपाई आज तक नहीं की जा सकी है। हजारों लोग मारे गए कुछ बेघर हुए तो कुछ अपनों से जुदा हुए ऐसी ही कुछ दर्द भरी कहानियां आज हम आपको बताने जा रहे है…
मुसीबत में मांगी जा रही थी मुंह मांगी कीमत
केदारघाटी में कुदरत ने मासूमों पर तो कहर ढाया ही साथ ही कुछ लालची इंसानों तक ने उनकी लाचारी का जमकर फायदा उठाया। उत्तराखंड में आई आपदा पर जहाँ पूरा देश एक जुट होकर मदद के लिए आगे आ रहा था वही कुछ शख्स ऐसे भी थे जो आपदा के शिकार लोगों का शोषण कर केदारनाथ जैसी पवित्र भूमि को शर्मसार करने से नहीं चुके।
आपदा पीड़ितों से मदद के बदले मुहं मांगे पैसे लिए जा रहे थे और जो हवाई सेवाओं द्वारा भोजन आपदा प्रभावित लोगों के लिए होता था उसे भी स्थानीय लोग उठा कर बेच रहे थे। ऐसा ही एक वाकया राजस्थान से आए यात्रियों के साथ हुआ।
पहली कहानी
जोधपुर , राजस्थान निवासी कैलाश सांकला बताते हैं कि वह 15 जून 2013 को अपनी पत्नी, 4 वर्षीय पुत्र और पिता रामराज सैनी के साथ केदारनाथ दर्शन के लिए पहुंचे थे। यहाँ वे जोधपुर गेस्ट हाउस में रुके थे। मौसम ख़राब होने के बाद से वहां खाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। बेटे को भूख से परेशान देख जब वो एक दुकान से बिस्किट लेने पहुंचे तो दाम सुनकर होश उड़ गए।
मजबूरन उन्हें 5 रुपए के एक बिस्किट के बदले 100 रुपए कीमत देनी पड़ी। कैलाश के मुताबित विनाशलीला थमने के बाद वे परिवार के साथ उरेडा के पावर हाउस तक पहुंचे। यहाँ उनसे शरण देने के बदले में तीन हजार रुपए लिए गए। उनके पास केवल 5 हजार रुपए ही बचे थे।
18 जून को जब राहत एवं बचाव दल वहां पहुंचा तो उनके बीमार पिता को हेलिकॉप्टर तक पहुँचाने के भी दो हजार रुपए वसूले गए थे। लेकिन जब रुद्रप्रयाग जिला अस्पताल पहुँचने पर किसी ने बेटे के हाथ में कुरकुरे का पैकेट थमाया तो कैलाश की आँखों से आंसू छलक पड़े। इसके बाद उन्हें किसी से शिकायत नहीं थी बस तसल्ली थी तो कुदरत के कहर से जिन्दा लौट आने की।
इसके अलावा कुछ लोगों ने केदारनाथ मंदिर में भी लूटपाट की। मूर्तियों के जेवर-गहने और दानपात्र से पैसे भी निकाले। यही नहीं, कुछ नेपाली मजदूरों ने महिलाओं के शवों से भी गहने उतारे, तीर्थ यात्रियों के कपड़े व सामान तक लुट लिए।
दूसरी कहानी
जहां एक तरफ लोगों को लुटा जा रहा था वही कुछ लोग ऐसे भी थे जो पीड़ितों की मदद करते नजर आये। मंदाकिनी नदी में आई बाढ़ के कारण सोन गंगा नदी का पुल बहने से फंसे लोग नदी पार नहीं कर पा रहे थे। जिस वजह से हजारों की तादात में तीर्थ यात्री सोनप्रयाग और मुंडकट्या के बीच फंस गए थे। वहा मौजूद कुछ लोगों ने उन फंसे हुए लोगों की मदद के लिए एक बड़ा पेड़ काटकर अस्थाई पुल बनवाया जिससे फंसे हुए लोग आर-पार हो सके।
तीसरी कहानी
ये कहानी एक विवाहित जोड़े की है जिसमें आपदा के समय होटल में ठहरे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहा गया था। उसी होटल में सहारनपुर की सविता और उसके पति भी ठहरे हुए थे खबर सुनते ही वह वहा से निकले। होटल के बाहर बाढ़ आ चुकी थी सविता और उसके पति सुरक्षित स्थान की तलाश में निकले । अचानक पानी और मलबे का बहाव उनकी तरफ आया सविता ने अपने पति का हाथ कसकर पकड़ लिया। मलबे से उनके पति दब गए थे। उन्होंने सहायता के लिए चीख पुकार लगाई लेकिन कोई नहीं आया जैसे-तैसे उन्होंने अपने पति को बाहर निकाला तो वह अपने पति को खो चुकी थी।
बचाव टीम ने सविता से घर का मोबाइल नंबर लिया। और सविता के बेटे मुकेश नागपाल को टीम ने पिता सुरेंद्र नागपाल की आपदा में मौत होने व मां के जिंदा होने की जानकारी दी। मुकेश देहरादून में सहस्रधारा स्थित हैलीपैड पहुँचने के बाद सुबह से लेकर शाम तक बद्रीनाथ जाने की कोशिश में लगा रहा। लेकिन उनसे बदरीनाथ तक ले जाने के दो लाख रुपये मांगे गए। हैलीपैड पर पहुंचे, साकेत बहुगुणा (पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के पुत्र) को देखकर रोता हुआ मुकेश हाथ जोड़कर मिन्नतें करने लगा। इसके बाद साकेत ने कंपनी संचालकों से मुकेश को बद्रीनाथ पहुँचाने को कहा। तब जाकर मुकेश अपने अपनी माँ सविता और मृत पिता के शव तक पहुँचा।
चौथी कहानी: कलेजे के टुकड़े ने गोद में तोडा दम
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश) के हरिओम वर्मा अपने परिवार के साथ बाबा केदारनाथ के दर्शन करने आए थे। लेकिन उनकी आठ वर्षीय बेटी और चार वर्षीय बेटा जिन्दा मलबे में दफन हो गए। मुंह के अंदर मलबा और पानी घुस जाने से बेसुध 12 साल के बेटे को दो दिन तक मुंह से सांस भरते रहे। लेकिन उसे बचा न सके और गोद में ही दम तोड़ दिया। जलप्रलय ने एक पल में उनके हस्ते खेलते परिवार को छीन लिया। यह गम उन्हें पुरे जीवन सताता रहेगा।
पांचवी कहानी: अपनों ने अपनों को खोया
ये कहानी दिल्ली की नेहा की है उन्होंने बताया कि 17 जून 2013 की सुबह जोरदार धमाके की आवाज आई और सब तहस-नहस हो गया उन्होंने आपदा में अपनी मां, दादी और नानी को खो दिया उस समय पानी मंदिर में तेजी से चारों तरफ घूमा और गेट को तोड़ता हुआ वहा मौजूद श्रद्धालुओं को मलबे में घसीटता गया। बचने वाले में सिर्फ वहीं थे जो किसी ऊँचे स्थान पर पहुंच गए थे।
छठी कहानी: राहत कार्य में जुटा हेलीकॉप्टर हुआ था क्रेश
केदारनाथ आपदा बचाव में वायुसेना ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी। जिसमे वायुसेना के एमआई-17 वी-5 हेलीकॉप्टर केदारनाथ में शवो के अंतिम संस्कार के लिए सामंग्री पहुंचाकर लौट रहा था। तभी अचानक खराब मौसम और कम ऊंचाई पर उड़ने के कारण हेलीकॉप्टर में आग लग गयी और जलकर ख़ाक हो गया। जिसमे वायुसेना के विंग कमांडर, एक जूनियर वारंट अफसर, एक सार्जेट, दो फ्लाइट लेफ्टिनेंट के अलावा एनडीआरएफ के 9 और आईटीबीपी के 6 जवान शहीद हो गए।
साल 2013, 16 जून “केदारनाथ आपदा” की ऐसी और भी कई कहानियां हैं जो आज भी रोंगटे खड़े कर देती हैं। जहां लोगों के कई तरह के रूप नज़र आये। कही इंसान ही इंसान को लूटता नजर आया तो कही वहीं इंसान दुसरो की मदद करता नजर आया। इस आपदा में कितनों ने अपनो को खोया जिसे सोचकर आज भी आँखे नम हो जाती हैं। कुदरत ने अपना ऐसा महाविकराल रूप धरा की सब जगह शवों के ढेर लग गए।