शिवपुराण की कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया था फिर उस उबटन को हाथो से रगड़ कर निकाला और जमा किया उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। फिर पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए।इस तरह से विनायक का जन्म हुआ। इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि पुत्र में जब तक स्नान करू तुम द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो, किसी को भी भीतर नहीं आने देना।
गणेश जी माता का आदेश पालन करते हुए द्वार पर बैठ गए कुछ समय बाद शिवजी आए तो उन्होंने कहा कि तुम कौन हो मुझे भीतर जाने दो। इस पर गणेश जी ने साफ मना कर दिया और कहा कि खबरदार कोई भी अंदर नहीं जाएगा। शिवजी भी इस बात से अनजान थे की वह बालक कौन है और वहा क्यों बैठा है ।इसके बाद दोनों में विवाद हो गया और उस विवाद ने इतना बड़ा रूप ले लिया के भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और शिवजी ने अपने त्रिशुल से गणेश जी का सिर काट दिया।
जब माता पार्वती बाहर आई तो रोने लगीं। उन्होंने शिवजी से कहा कि आपने मेरे पुत्र का सिर काट दिया। फिर शिवजी उनसे पूछते है कि ये तुम्हारा पुत्र कैसे हो सकता है।माता पार्वती शिवजी को पूरी कथा सुनाती है। और माँ पार्वती अपने विकराल रूप को धारण कर लेती है और बहुत क्रोधित हो जाती है जिससे शिवजी पार्वती को मनाते हुए कहते है कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए।
इस पर उन्होंने अपने गणों से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां कोई भी पहला प्राणी मिले उसका सिर ले आओ। वहां उन्हें भगवान इंद्र का हाथी एरावत मिलता है और वे उसका सिर ले आते है। इसके बाद भगवान शिवजी ने गणेश जी के धड़ में एरावत का सर जोड़ दिया और उनके अंदर प्राण डाल दिए। इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा था। और सभी देवताओं ने मिलकर गणेश ( यहाँ पढ़िए Ganesh Bhagwan ki Aarti )का गुणगान किया।