राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम की रोचक कहानियों की श्रृंखला में आज आप पढेंगे “महामूर्ख की उपाधि“। कैसे प्रतिवर्ष होने वाले होली उत्सव में हर बार की तरह इस बार भी तेनालीराम महामूर्ख की उपाधि और दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं अपने नाम कर ले जाता हैं।
विजयनगर में होली और दीपावली के पर्व धूमधाम से मनायें जाते थे। स्वयं महाराज कृष्णदेवराय भी इन पर्वों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे ।राज्य की ओर से दीपावली पर पंडित श्री की उपाधि तो होली पर महामूर्ख की उपाधि दी जाती थी। उपाधियों के साथ-साथ दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं भी दी जाती थी। यह संयोग ही था कि हर साल दोनों उपाधियाँ तेनालीराम अपने बुद्धि बल से जीत लिया करता था।
एक बार जब होली का त्यौहार आने को था तो तेनालीराम से जलने वाले दरबारियों ने गुप्त मंत्रणा की कि इस बार की उपाधि और इनाम तेनालीराम को नहीं मिलने चाहिए।दरबारियों ने तेनालीराम के खास सेवक को प्रलोभन देकर तेनालीराम को भांग पिलवा दी ताकि वह उत्सव में भाग ही ना ले सके और उपाधि व स्वर्ण मुद्राएं पुरोहित के हाथ लग जाए।
होली के उत्सव का आयोजन एक विशेष उद्यान में किया गया। उद्यान को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया और होली खेलने के लिए केसर , भांग, पकवान, इत्र, चंदन आदि भी मंगवाए गए थे। होली उत्सव शुरू होने से पहले हर वर्ष की तरह महाराज ने घोषणा की,”सब लोग होली खेलें, पकवान खाएं और मुर्खतापूर्ण हरकतें करें जो कोई भी अधिक मूर्खतापूर्ण हरकत करेगा उसे महामूर्ख कि उपाधि के साथ दस हज़ार मुद्राएँ प्रदान की जाएँगी।” उत्सव आरंभ होने पर कोई भांग पीकर हंस रहा था, नाच रहा था तो कोई चुटकुले सुना रहा था। लेकिन महाराज की नज़रें सिर्फ तेनालीराम को खोज रही थी।
भोजन का समय हुआ तो सब भोजन करने लगे। भांग पीने के कारण कोई बर्फी उछाल रहा था तो कोई पकवानों को दबादब मुहँ में ठुसें जा रहा था।दूसरी ओर पुरोहितजी खा कम रहे थे अपनी कुर्ते की जब में बर्फी ज्यादा भर रहे थे ।उधर तेनालीराम का भंग का नशा उतरा तो वह हडबडाकर महल के उद्यान की ओर दौड़ा और एक कोने में खड़े होकर होली के उत्सव का आनंद लेने लगा।
तभी उसकी नज़र पुरोहित पर पड़ी जो कि जेब में बर्फी भरे जा रहा था और कुछ बर्फी खा भी रहे थे। खाते-खाते कुर्ते से ही हाथ पोंछ लेते थे । जब पुरोहित की दोनों जेबें बर्फी से भर गयी तो तेनालीराम ने एक लोटा पानी लाकर उसकी दोनों जेबों में डाल दिया।
तेनालीराम की इस हरकत पर पुरोहितजी आग बबूला हो गए और तेनालीराम से झगड़ने लगे। इसी बीच महाराज की नज़र भी इन दोनों पर पड़ गयी और वो भी वहाँ आ गए। पुरोहित की बात सुन महाराज तेनालीराम को डांटते हुए बोले तुमने ये कैसीमुर्खता कर दी और ऊपर से हंस भी रहे हो। बताओ तुमने ऐसा क्यों किया ?
तेनालीराम बोला ,”महाराज पुरोहितजी की जेबों ने बहुत मिठाई खा ली थी। मैंने सोचा कही इन्हें अपच ना हो जाए इसलिए मैंने इन्हें पानी पिला दिया।”
तुम बिल्कुल महामूर्ख हो जेबें भी भला बर्फी खाती हैं?
महाराज की बात सुनकर तेनालीराम हंसने लगा और उसने पुरोहित की जेबें उलट दी जिसकी वजह से जेब में भरी पानी से ओतप्रोत बर्फी घांस पर गिर गयी।
फिर क्या था वहाँ उपस्थित सभी लोग हंसने लगे और पुरोहित शर्म से पानी पानी हो गया ।
तभी तेनालीराम बोला, “महाराज! इतना सब होने के बावजूद आपने मुझे महामूर्ख कहा। फिर दरबारियों से पूछा क्या आप सब भी मुझे महामूर्ख समझते हैं।
सब एक साथ बोल पड़े जब तुम्हारी हरकत ही महामुर्खों वाली हैं।
तब तेनालीराम ने महाराज से कहा कि इसका मतलब इस बार भी महामूर्ख की उपाधि मुझे ही मिलनी चाहिए। तेनालीराम की बात सुन महाराज ने महामूर्ख की उपाधि और दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं उसे ही दे दी।