बहुत समय पहले की बात है एक राजा को जंगल में बाज के दो बच्चे घायल अवस्था में मिले। राजा अपने सैनिकों के साथ उन बच्चों को महल ले आया और उनकी खूब देख-रेख की। कुछ दिन बाद दोनों बच्चें स्वस्थ हो काफी सुंदर दिखने लगे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक कुशल व्यक्ति को नियुक्त कर दिया। दिन बीतते गए और अब वो समय आ गया जब बाज के बच्चें आसमान में पंख फैलाकर उड़ने योग्य हो गए थे।
एक दिन राजा का मन दोनों बाजों की उड़ान देखने का हुआ। राजा पहुंच गए उस जगह जहां उन दोनों को पाला जा रहा था। राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे व्यक्ति से कहा -“तुम दोनों को उड़ने का इशारा करों। मैं इन दोनों की उड़ान देखना चाहता हूं।”
राजा का आदेश पाकर व्यक्ति ने दोनों बाज पक्षियों को उड़ने का इशारा किया। जहाँ इशारा पाते ही पहला बाज धीरे-धीरे आसमान की ऊँचाइयाँ छू रहा था वहीं दूसरा कुछ ऊपर उड़ने के बाद उसी जगह आकर बैठ गया जहाँ से वह उड़ा था।
यह देखकर राजा को आश्चर्य हुआ उन्होंने व्यक्ति से इसका कारण पूछा। व्यक्ति ने कारण बताते हुए कहा – “महाराज! शुरू से ही इस बाज के साथ यही समस्या है वह इस डाल को छोड़ता ही नहीं। पहला बाज़ तो आराम से उड़ान भरता हुआ आकाश की ऊँचाइयों को छूने लगता है लेकिन यह हर बार कुछ दूर उड़कर वापस इसी डाल पर आकर बैठ जाता है।”
राजा को तो दोनों ही बाज प्रिय थे। वह दूसरे को भी उड़ता हुआ देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने व्यक्ति की बात सुनकर पूरे राज्य में घोषणा कर दी कि जो भी व्यक्ति इस बाज को ऊँचाई तक उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम और स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी।
घोषणा सुनकर राज्य के कोने-कोने से अनुभवी व्यक्तियों ने आकर बहुत बार कोशिशें की लेकिन बड़े से बड़ा जानकार भी बाज को उड़ाने में कामियाब न हो सका। हफ्ते बीतते गए परंतु हजारों बार प्रयास करने के बाद भी बाज थोड़ी दूर उड़ता और वापस आकर वहीं उस डाल पर बैठ जाता।
एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि राजा की आँखे खुशी से चमकने लगी क्योंकि दोनों बाज एक साथ आसमान में उड़ रहे थे। राजा ने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने यह कारनामा कर दिखाया था। राजा के आदेश पर सैनिको ने पता लगाया तो वह व्यक्ति एक किसान था। सैनिक उसे अपने साथ दरबार मे ले आए और फिर राजा ने उसे स्वर्ण मुद्राएं भेट कर कहा – “जो कार्य बड़े-बड़े अनुभवी न कर सके वह कार्य तुमने कैसे कर दिखाया।
किसान ने जवाब दिया।, “महाराज! न तो मैं पक्षियों के विषय में ज्यादा जानता हूँ और न ही मुझे उनसे जुड़ा कोई अनुभव है। मैं तो केवल एक साधारण सा किसान हूँ। मैंने तो बस वो डाल काट दी जिस पर बैठने का बाज आदि हो चुका था। जब वह डाल ही नहीं रही तो दूसरा बाज भी अपने साथी के साथ पंख फैलाकर उड़ चला।”
शिक्षा:
मित्रो! हम सब भी ऊँचा उड़ने और अपनी मंजिल को पाने के लिए ही बने है। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते है कि अपनी सही काबिलियत को भूल जाते है। (ठीक उस बाज की तरह।) बस यही सोचते है जैसा चल रहा है इतना ही ठीक है।
इसी भूल में आधा जीवन गुजर जाता है और हम कुछ बड़ा करने की अपनी काबिलियत का सही उपयोग नहीं कर पाते। अगर आप भी सालों से ऐसे ही किसी काम या नौकरी में फँसे है तो जरा विचार करें । कहीं आप भी अपनी ऊँची उड़ान भरने की काबिलियत को तो मिस नहीं कर रहे।