What is Kaal Sarp, Yog or Dosh? – अभी तक कालसर्प योग अथवा दोष के बारे में अनेकानेक लेख प्रकाशित हो चुके हैं और भविष्य में भी होते रहेगें लेकिन वास्तविकता में कालसर्प दोष होता भी है या ज्योतिषियों तथा पंडितों की केवल कमाई का साधन ये योग बना हुआ है! क्योंकि भारतीय ज्योतिष में या पराशर जी द्वारा कहीं भी “कालसर्प” दोष या योग का जिक्र नहीं किया गया है, पर सर्पदोष का वर्णन जरुर मिलता है जो एक अलग प्रकार का योग है। जिस प्रकार नाभस योग बनते हैं (जो जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर आधारित होते हैं) उन्हीं नाभस योगों के आधार पर ही कालसर्प योग भी ग्रहों की आकाशीय स्थिति है।
कुंडली में कैसे बनता है “कालसर्प योग”?
जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु से केतु के मध्य आ जाते हैं तब इस स्थिति को कालसर्प दोष का नाम दिया जाता है।
कालसर्प की गणना कब ज्योतिषी करने लगे ये बताना कठिन है और किसने आरंभ की ये कहना भी मुश्किल हैं किन्तु ये तय है कि उत्तर भारतीय ज्योतिषी इस दोष को कुछ वर्ष पहले से जानते हैं। इस योग का प्रचार दक्षिण भारत में ज्यादा मिलता है और धीरे-धीरे यह पूरे भारत में फैल गया। कालसर्प दोष में राहु को साँप का मुख तो केतु को पूँछ माना गया है। यदि किसी की कुंडली में यह योग बन भी रहा है तो जरुरी नहीं कि ये सदा हानि ही पहुंचाएगा क्योंकि वर्तमान समय में जो टेक्नॉलॉजी है वह राहु के अधिकार में आती है तब राहु को बुरा नहीं कहा जा सकता है।
जीवन में आ रही हर समस्या की जड़ “कालसर्प” नहीं
कालसर्प राहु/केतु से बनने वाला योग है और किसी भी जातक को यदि लगता है कि उसके जीवन में जो रुकावट अथवा बाधा आ रही है वह इस योग की वजह से आ रही है तब उसे सबसे पहले यह समझना होगा कि जो भी जातक जन्म लेता है वह अपने पूर्व जन्म के बहुत से कर्म साथ लेकर पैदा हो रहा है जिन्हें संचित कर्म कहते हैं, जिनसे वह जन्मों तक बंधा रहता है। जो कर्म वह भोग रहा हैं वह जातक का प्रारब्ध कहलाता है और जो कर्म वर्तमान में जातक कर रहा है वह क्रियमाण कर्म कहलाता है।
हर व्यक्ति अपनी कुंडली में अच्छे व बुरे कर्म लेकर पैदा होता है और उन कर्मों का फल(अच्छा या बुरा) ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में मिलता है। किसी भी व्यक्ति के संचित कर्म कैसे हैं वह कुंडली के योग बताते हैं। जो दशा-अन्तर्दशा जातक भोगता है और उसी के अनुसार फल पाता है तो वह प्रारब्ध के कर्म बताती है। जो क्रियमाण कर्म जातक कर रहा है वह ग्रहों का गोचर बताता है क्योंकि पहले कुंडली का योग हैं फिर योग में शामिल ग्रह की दशा है और अंत में दशा का फल ग्रहों का गोचर प्रदान करता है। इस प्रकार तीनों बातें परस्पर संबंध बनाती हैं या ये भी कहा जा सकता है कि तीनों बातें एक-दूसरे की पूरक हैं।
अब कोई भी अच्छे या बुरे फल मिल रहे हैं तब उसका सारा दोष कालसर्प योग पर नहीं मढ़ देना चाहिए क्योंकि जन्म कुंडली का उचित विश्लेषण अति आवश्यक है। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में ये योग बन भी रहा है और राहु की दशा भी चल रही है तो ये उसकी कुंडली का “योग” है जिसका फल उसे भुगतना पड़ रहा है। कालसर्प योग सदा अशुभ नहीं होता है कई बार ये शुभ फल भी प्रदान करता है। राहु/केतु का अपना कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है और ये जिस राशि में बैठते हैं उस राशि के स्वामी की जन्म कुंडली मैं स्थिति के आधार पर अपना फल प्रदान करते हैं। वैसे राहु को शनि की तरह माना जाता है और केतु को मंगल की तरह माना जाता है।
कब देता है बुरे फल?
जन्म कुंडली में यदि राहु के साथ सूर्य, चन्द्र या गुरु स्थित है और वह कालसर्प योग बना रहा है तब यह शुभ फलों में कमी कर सकता है इसलिए नहीं कि ये योग बना है इसलिए कि सूर्य/चन्द्र, राहु के साथ ग्रहण योग बनाते हैं जो अशुभ योग है। सूर्य आत्मा तो चंद्र मन है जबकि राहु का कोई अस्तित्व ही नहीं है वह तो धुँआ भर है। जब चारों ओर धुँआ छाया होगा तब कैसे आत्मा का निखार होगा और कैसे हमारा मन निर्मल हो पाएगा। इस धुँए में व्यक्ति को कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं देगा तो अनिर्णय की स्थिति में रहेगा और जब निर्णय ही नहीं ले पाएगा तो जीवन थमा सा लगेगा ही। दूसरा ये कि राहु धुँआ-सा है तो व्यक्ति को स्पष्ट परिस्थितियाँ दिखाई नहीं देती जिससे उसके द्वारा लिए निर्णय सही नहीं हो पाते और जीवन में बाधाएं तथा हानि होती है।
यही राहु जब गुरु के साथ रहकर इस योग को बना है तब मन में सही-गलत को लेकर कशमकश सी चलती रहती है क्योंकि गुरु ज्ञान का कारक है वह व्यक्ति को गलत करने से रोकता है लेकिन राहु का प्रभाव इतना ज्यादा हो जाता है वह ज्ञानी को भी अज्ञानी बना देता है और जातक परंपरा से हटकर कार्य कर बैठता है।
हमेसा बुरा नहीं होता कालसर्प योग
यह कालसर्प योग व्यक्ति को शिखर तक भी ले जाता है। जब केन्द्र में राहु स्थित है तब यह अपनी अशुभता भूल जाता है और अच्छे फल प्रदान करता है। जब राहु केन्द्र में त्रिकोण भावों के स्वामी के साथ स्थित है तब यह राजयोगकारी हो जाता है और शुभ फल देता है। जब राहु त्रिकोण में स्थित होकर केन्द्र के स्वामी से संबंध बनाता है तब भी यह राजयोगकारी हो जाता है। राहु अगर मेष, वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, मकर, कुंभ में है तब भी अच्छा कहा जाता है विशेषकर मेष, वृष व कर्क का राहु। यदि दशम भाव में राहु स्थित है तब व्यक्ति अपने कैरियर में शिखर तक पहुंचता है। तृतीय भाव में राहु स्थित होने से व्यक्ति कभी हार मानता ही नहीं है क्योंकि यहाँ राहु उसे सदा आगे बढ़ने को प्रेरित करता है।
राहु के बारे में एक भ्राँति यह भी है कि पंचम भाव में स्थित राहु संतान हानि करता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पंचम भाव का राहु एक पुत्र संतति भी प्रदान करता है। छठे भाव में स्थित राहु कभी शत्रुओं को जातक पर हावी नहीं होने देता है। इसलिए व्यक्ति को जीवन में बाधाएँ आती हैं, धन हानि होती है या अन्य कोई भी घटना घटती है तब उसका सारा दोष इस कालसर्प दोष पर नहीं थोपना चाहिए क्योंकि अगर ये बन रहा है तो आपका कर्म है और यदि इस योग में शामिल राहु या केतु की दशा आती है तब पूर्व जन्मों के संचित कर्मों के कारण आपको इसे भोगना भी पड़ेगा।
कालसर्प योग/दोष से मुक्ति के उपाय
यदि फिर भी किसी व्यक्ति को लगता है कि कालसर्प योग होता ही है और उसी के कारण उसे बाधा आ रही है तब आवश्यक नहीं कि उसके निवारण के लिए वह हजारों रुपया खर्च कर दे या ज्योतिषियों द्वारा बताए स्थानों पर जाकर इसकी पूजा कराकर आए। जैसा कि बताया गया है कि राहु साँप का मुख तो केतु पूँछ है और यह साँप भगवान शंकर के गले की शोभा बढ़ाता है, उनके गले का हार है इसलिए कालसर्प दोष का सर्वोत्तम उपाय शिव की पूजा-उपासना से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हैं।
- शिवलिंग पर नियमित जलाभिषेक से जातक को राहु के प्रकोप से राहत मिलती है।
- व्यक्ति नियमित रूप से रुद्री पाठ कर सकता है, मासिक शिवरात्रि का उपवास रख सकता है।
- प्रतिदिन एक माला “ऊँ नम: शिवाय” की कर सकते है अथवा महामृत्युंजय मंत्र की एक माला नियमित रूप से करने पर भी व्यक्ति को राहत मिलती है।
- चंदन से बनी वस्तुओं का उपयोग करने से मन शांत होता है और भ्रम की स्थिति से व्यक्ति बचता है।
- शनिवार के दिन राहु के नाम का दान भी दिया जा सकता है विशेषकर जो कुष्ठ रोगी होते हैं उन्हें खाने-पीने की वस्तुएँ दान की जाएँ।
- रात्रि में राहु के मंत्र की एक माला करने से भी राहु शांत होता है।
राहु की एक खासियत यह भी है कि जो व्यक्ति इसकी दशा/अन्तर्दशा में जितना भयभीत होता है यह ग्रह उसे और अधिक डराने का काम करते हैं। इसलिए बिना डरे व्यक्ति को अपना कर्म करते रहना चाहिए और ईश्वर का भजन करना चाहिए। यदि किसी बात को लेकर अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है तब किसी कुशल व्यक्ति से अवश्य परामर्श कर लेना चाहिए।