ये उस समय की बात है जब बनारस में राजा ब्रह्मदत्त का शासन था। वे बहुत ही दयालु और प्रजापालक राजा थे ।बनारस के ही एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। जिसका सोमदत्त नाम का एक बेटा था।वह ब्राह्मण खेती- बाड़ी करके अपने परिवार का गुजरा करता था। वह सुबह उठकर अपने दोनों बैलों को लेकर खेत में लग जाता और पूरा दिन काम करता जिससे उन्हें भरपेट खाना तो मिल जाता लेकिन और जरूरतों की पूर्ति नही हो पाती थी।
अपने पिता को इतनी मेहनत करते देख सोमदत्त बोला, “ पिताजी खेती- बड़ी से हमारी गरीबी दूर नही हो सकती ,इसलिए आप मुझे पढ़ने के लिए तक्षशिला भेज दीजिए। अपने बेटे की बात से ब्राह्मण सहमत हो गया और उसे पढ़ने के लिए भेज दिया। सोमदत्त ने मन लगाकर अपना अध्ययन पूरा किया। अध्ययन पूरा करके वह अपने घर आ गया। , जहाँ उसके पिता अभी भी कठिन परिश्रम करके अपने दिन काट रहे थे। यह देखकर उससे रहा ना गया और वह अगले ही दिन बनारस पहुँच गया, जहाँ उसे राजदरबार में नौकरी मिल गई। नौकरी पाकर वह बहुत खुश हुआ। लेकिन उसके पिता अभी भी खेती करते रहे।
कुछ समय बाद उस गरीब ब्राह्मण एक बैल मर गया। जिससे वह बहुत परेशान हो गया क्योंकि एक बैल से वह खेती भी नही कर सकता था। अब ब्राह्मण ने सोचा , “उसका बेटा तो राजा के यह काम करता हैं तो वह राजा से कहकर मुझे एक बैल दिलवा देगा।” यह सोचकर वह अपने बेटे के पास पहुँच गया और वहाँ जाकर उसे घर का सारा हाल कह सुनाया।
सोमदत्त बोला , “ पिताजी अब तो मैं नौकरी भी करने लग गया हूँ तो आप माँ को लेकर मेरे पास ही आ जाइए।” उसके पिताजी बोले , “बेटे मैंने अपनी सारी उम्र अपने गाँव में ही बिता दी हैं। मुझे अपने गाँव से बहुत लगाव हैं इसलिए मेरा यहाँ मन नही लगेगा।वैसे भी मेरे लिए थोड़ी सी ज़मीन ही मेरे लिए बहुत कुछ हैं। तुम मुझे कैसे भी करके राजा से एक बैल दिलवा दो।”
सोमदत्त बोला , “ पिताजी अभी-अभी तो मेरी नौकरी लगी हैं अगर मैं राजा से बैल मागूंगा तो उन्हें लगेगा कि में अपने पद का फायदा उठा रहा हूँ और अभी मेरे पास इतने रूपये भी नही की मैं आप को एक बैल दिलवा दूँ। आप ऐसा करिए आप खुद ही राजा से बैल के लिए बोल दीजिए।” इतना सुनकर उसके पिताजी बोले , “ बेटा मैं राजा से जाकर क्या कहूँगा। मैं तो इस बारे में कुछ जानता ही नही।”
सोमदत्त बोला, “ मैं एक कागज़ पर सारी बातें लिखकर आप को दे दूंगा ,आप उसे अच्छी तरह याद कर लेना और राजा के सामने जाकर बोल देना।” उसके पिता ने सहमति जता दी।
सोमदत्त ने लिखा , महाराज प्रणाम ! मैं आप से निवेदन करने आया हूँ की आप मुझे एक बैल देने की कृपा करें। दरअसल मेरे पास दो बैल थे, जिसमे से एक बैल मर गया। जिस कारण में खेती नही कर पा रहा हूँ।
अब सोमदत्त ने ये सारी बात अपने पिता को अच्छी तरह याद करवा दी। अगले दिन ब्राह्मण राजदरबार में पहुँच गया और जाते ही राजा को प्रणाम किया।
राजा ने उनसे पूछा, “ तुम कौन हो और हमसे क्या चाहते हो।”
राजा की बात सुनकर सोमदत्त के पिता घबरा गए और कागज़ में लिखी सारी बातें भूल गए और बोले , “मैं आपको अपना एक बैल देने आया हूँ।” इतना सुनते ही दरबार में बैठे सभी लोगों की हंसी छूट पड़ी। यहाँ तक की राजा को भी हंसी आ गई और वो मजाकिया अंदाज़ में बोले ,“अच्छा तो तुम हमें अपना बैल देने आए हो।”
जी महाराज ,सोमदत्त के पिता ने कहा।
इतना कहकर सोमदत्त के पिता ने राजा को सारी बात सच सच बता दी। यह सुनकर राजा सोमदत्त से बहुत खुश हुए और सोचने लगे ,जहाँ लोग हर चीज़ के लिए अपने पद का फायदा उठाते हैं वहीं सोमदत ने ऐसा करने से साफ़ इनकार कर दिया और अपने पिता को हमारे पास भेज दिया।
सोमदत्त की नेकी और ईमानदारी देखकर राजा ने उसके पिता को एक बैल की जगह आठ जोड़ी बैल दे दिए। जिससे उनके बुरे दिन टल गए।