भगवान ने जब स्त्री बनाई तो उन्हें काफी समय लगा था जानिए क्या वजह थी। जो भगवान् को भी इतना समय लगा ।पुराणों के अनुसार जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब 6दिन हो गये थे।फिर भी स्त्री की रचना अधूरी थी तभी नारद ने भगवान् से पूछा- भगवान आप स्त्री को बनाने में इतना समय क्यों ले रहे हो?
भगवान ने जवाब दिया
नारद क्या आपने स्त्री के सारे गुणों को देखा हैं?जो इसकी रचना के लिए जरूरी हैं।यदि नही देखे तो सुनो
- स्त्री हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है।
- यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है।
- यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है।
- यह दुनिया भर के काम सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है।
- इसमें सबसे बड़ा गुण यह है कि बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं बीमारी में भी काम कर सकती है।
नारद जी चकित रह गये और आश्चर्य से पूछा – कि भगवान क्या यह सब एक स्त्री द्वारा कर पाना संभव है?
भगवान ने कहा- यह मेरी अद्भुत रचना है।
नारद जी ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा- भगवान यह तो बहुत कोमल और नाजुक है।
भगवान ने कहा- हां, यह बाहर से बहुत ही नाजुक है, मगर इसे अंदर से बहुत मजबूत बनाया है। इसमें हर परिस्थितियों का संभालने की ताकत है। यह कोमल है पर कमजोर नहीं है।
नारद जी ने पूछा- क्या यह सोच भी सकती है?
भगवान ने कहा- यह सोच भी सकती है और मजबूत होकर मुकाबला भी कर सकती है।
नारद जी ने नजदीक जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोले – भगवान ये तो गीले हैं इनमे से कुछ तरल बह रहा है।
भगवान बोले– यह इसके आंसू हैं।
देवदूत- आंसू क्यों भगवान?
भगवान बोले- क्योकि आंसू इसकी ताकत है। आंसू से स्त्री का फरियाद करने, प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दूर करने का तरीका है।
नारद जी फिर बोले – भगवान आपकी रचना सच में अद्भुत है। आपने सब कुछ सोचकर बनाया है स्त्री को आपकी रचना श्रेष्ठ हैं।
भगवान बोले- स्त्री की रचना अद्भुत है स्त्री हर पुरुष की ताकत है, जो उसे प्रोत्साहित करती है। वे सभी को खुश देखकर खुश रहती हैं, हर परिस्थिति में हंसती रहती हैं। उसे जो चाहिए, वह लड़कर भी ले सकती है। उसके प्यार में कोई शर्त नहीं है। उसका दिल टूट जाता है, जब अपने ही उसे धोखा दे देते हैं, मगर हर परिस्थितियों से समझौता करना भी जानती है।यही मेरी रचना स्त्री है।
नारद जी – भगवान आपकी रचना संपूर्ण हो गई है।
भगवान बोले- नही नारद अभी इसमें एक कमी बाकि है।
नारद जी – क्या भगवान ?
भगवान – ‘यह अपनी महत्ता भूल जाती है।’