झारखण्ड की राजधानी से 18 किलोमीटर की दुरी पर रांची-पतरातू मार्ग के पिठौरिया गांव में 2 शताब्दी पुराना राजा जगतपाल सिंह का किला स्थित है। यह 100 कमरों वाला विशाल महल अब खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। इसके खंडहर में हर साल बिजली गिरती है।
आश्चर्य जनक रूप से:
इस किले पर दशकों से हर साल बिजली गिरती आ रही है जिससे की हर साल इसका कुछ हिस्सा टूट कर गिर जाता है। यह किला अब बिलकुल खंडहर हो चुका है।
यहाँ के लोगो के अनुसार:
इस किले पर हर साल बिजली एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण गिरती है। बिजली गिरना एक प्राकृति घटना है, लेकिन एक ही जगह पर दशकों से लगातार बिजली गिरना आश्चर्यजनक बात है।
राजा जगतपाल सिंह की कहानी
पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह ने अपने क्षेत्र का विकास कर उसे व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना दिया था। वो अपने क्षेत्र की जनता में काफी लोकप्रिय थे लेकिन उनकी कुछ गलतीयों ने उनका नाम इतिहास में गद्दारों की सूचि में शामिल करवा दिया।
सबसे बड़ा गुनाह उन्होंने 1857 की क्रांति में किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों को रोकने के लिए उन्होंने पिठौरिया घाटी की घेराबंदी की थी, ताकि क्रांतिकारी अपने मकसद में सफल न हो सके। इतना ही नहीं वे क्रांतिकारियों की हर गतिविधियों की जानकारी अंग्रेज तक पहुंचाते थे। इससे राज्य में राजा के प्रति नाराजगी अपने चरम पर पहुंच गई। उनकी गद्दारी के चलते ही उस समय क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ नाथ शाहदेव उन्हें सबक सिखाने पिठौरिया पहुंचे और उन पर आक्रमण किया। बाद में वे गिरफ्तार हो गए और जगतपाल सिंह की गवाही के कारण उन्हें 16 अप्रैल 1858 को रांची जिला स्कूल के सामने कदम्ब के वृक्ष पर फांसी पर लटका दिया गया। जानकार बताते हैं कि उनकी ही गवाही पर कई अन्य क्रांतिकारियों को भी फांसी पर लटकाने का काम किया गया।
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विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नाम लेने वाला नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल उस समय तक बिजली गिरती रहेगी जब तक यह किला पूरी तरह बर्बाद नहीं हो जाता। तब से हर साल पिठौरिया स्थित जगतपाल सिंह के किले पर वज्रपात हो रहा है।