इससे पहले हमने आपको मेष लग्न में योगकारक ग्रह (Favorable Planets) के बारे में बताया था। श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम बात करते हैं मेष लग्न की कुंडली में मारक ग्रहों (Unfavorable Planets) यानि अशुभ ग्रहों की। इस लग्न में कुल मिलाकर शुक्र और बुध दो ऐसे ग्रह है जिन्हें हम मारक कह सकते है। अगर शनि ग्रह की बात की जाएं तो वह मेष लग्न कुंडली में सम ग्रह माने जाएँगे।
शुक्र ग्रह
लग्नेश मंगल ने इस जन्म-कुंडली में शुक्र देवता को दुसरे भाव जो धन कुटुम्ब, वाणी का भाव है और सातवें भाव जिससे दाम्पत्य सुख, पार्टनरशिप आदि का विचार किया जाता हैं, का मालिक बनाया। लेकिन अष्टम से अष्टम के नियम अनुसार इस कुंडली में शुक्र अच्छे घरों का स्वामी होने के बाद भी अतिमारक ग्रह बना। इस तरह शुक्र देव इस लग्न कुंडली के अति मारक ग्रह माने जाते हैं।
बुध ग्रह
बुध देव को इस जन्मपत्रिका में तीसरे और छठे भाव का स्वामित्व प्राप्त हैं।
तीसरा भाव – छोटे भाई-बहन, पराक्रम, लेखन, धैर्य, दांया कान, दायीं भुजा, मेहनत और छोटी-मोटी यात्राओं का घर माना जाता हैं ।
छठां भाव- रोग, ऋण-कर्जा, दुर्घटना, लड़ाई-झगड़ा आदि दोनों ही बुरे भावों के स्वामी बुध ग्रह हुए। इसलिए मेष लग्न की कुंडली में बुध देव भी मारक ग्रह बने। जब तक कोई नियम लागु नहीं होता तब तक बुध ग्रह इस लग्न में जातक के लिए अतिमारक ग्रह के परिणाम देंगे।
सम ग्रह
शनि ग्रह
मेष लग्न की पत्रिका में शनि देव 10 वें और 11 वें भाव के मालिक हैं। दशम भाव जातक का कर्म भाव हैं। जातक जैसे कर्म करेगा वैसा ही उसका भाग्य बनेगा। और 11वां भाव आय भाव कहलाता हैं दोनों ही अच्छे भाव हैं ।
ग्रहों के मित्र-शत्रु चार्ट के अनुशार शनिदेव लग्नेश मंगल के अतिशत्रु ग्रह माने जाते हैं। किन्तु दो अच्छे भावों का स्वामित्व होने के कारण शनिदेव इस कुंडली में सम ग्रह कहे जाते हैं, मारक ग्रह नहीं।
सम ग्रह का अर्थ है – “अच्छे भाव का स्वामी किन्तु लग्नेश का अतिशत्रु”।