स्वास्तिक क्या है यह तो हर हिन्दुधर्म के अथवा अन्य धरम वाले भी जानते होगे जो इसे मानते हो तो आइए जाने क्या है स्वास्तिक के पीछे कुछ तथ्य |स्वास्तिक हर मंगल कार्य में बनाया जाता है तथा इसे बहुत ही शुभ माना जाता है|किसी भी पूजा पाठ विवाह आदि में स्वास्तिक को बनाना आवश्यक होता है ।
आइए जाने स्वास्तिक का अर्थ क्या है तथा क्यों हम इसे बनांते है जानिए –
स्वास्तिक शब्द का यहां ‘सु’ का अर्थ है मंगल कार्य का प्रतीक जिसे बनाने से सब मंगल ही होता है|यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य में स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है।स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार:
- हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि रचकेनाकार भगवान ब्रम्हा और चार देवों यानी कि भगवान ब्रम्हा, विष्णु, महेश और गणेश से तुलना की गई है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने चार बिंदु चार सिरों को दर्शाती हैं।विध्मानो द्वारा यह ज्ञात होता है की यह सिर ब्रम्हा के है|
- कहा जाता है यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रम्हा प्रकट होते हैं।
- मांगलिक कार्यों में स्वास्तिक का प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम से बना कर किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व से लाल रंग को सही माना जाता है लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है।
- हिन्दू धर्म के अलावा स्वास्तिक का और भी कई धर्मों में महत्व है। जिनमे से एक है,बोद्धधर्म में स्वास्तिक भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है|