मेथी एक प्रकार की भाजी या साग है इसको सब्जी के रूप में पत्तियों का प्रयोग किया जाता है और इसके बीजो को भी प्रयोग में लाया जाता हैI यह बहुत गुणकारी पौधा होता है जिसके सेवन से बहुत लाभ होता है इसको आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग में लाया जाता है मेथी के सूखे दानो का उपयोग मसाले के रूप मे, सब्जियो के छौकने व बघारने, अचारो मे एवं दवाइयो के निर्माण मे किया जाता है। भारतवर्ष में इसकी पैदावार काफी मात्रा में होती है तथा इसको खेतो में रोपने पर किसान भाइयो को लाभ भी अधिक होता है|
इसकी खेती मुख्यरूप से भारत के
मध्य प्रदेश
राजस्थान
पंजाब एवं उत्तर प्रदेश आदि जगह में की जाती हैI
मेथी की रोपाई के लिए उपयूक्त वातावरण
इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है इसकी वृद्धि के लिए ठंडे मौसम और कम तापमान ठीक रहता है। जब उसमे फूल आते समय नमी और बादल छाये रहे तो मेथी में बीमारी तथा कीड़े आने लगते है| फसल पकते समय ठण्डा एवं शुष्क मौसम उपज के लिए बहुत अच्छा होता है।
रोपाई के लिए उपयुक्त ज़मीन
दोमट या बालू वाली मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में होती है प्रयाप्त मात्रा में जल निकास क्षमता हो और खेती के लिय दोमट भूमि सर्वोत्तम उत्तम मानी जाती है।
भूमि को कैसे बनाए मेथी लगाने के काबिल
भूमि को साफ स्वच्छ एवं मृदा युक्त तैयार होना चाहिए अगर ऐसा नही होगा तो मेथी लगाने पर उसके अंकुर को उगने में दिक्कते आएगी | तथा इस बात का ध्यान रखे की खेत की नमी बनी रहे|
मेथी के कुछ किस्मे
गुजरात मेथी-2
हिसार सोनाली
कोयंबटूर-1 आदि प्रमुख किस्में हैं।
मेथी की बुवार्इ का तरीका और समय
मेथी के फसल की बुवार्इ के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक का समय सर्वोत्तम रहता है परन्तु पहाड़ी इलाको में मेथी का समय मार्च अप्रेल सही समय होता है । अगर हम देरी से बुंवार्इ करे तो मेथी की उपज कम प्राप्त होती है। अधिक उत्पादन के लिये इसकी बुंवार्इ कतार में 12 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी के हिसाब से करते हैं। बीज की गहरार्इ 6 से.मी से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
जल सिचाई हेतु
मेथी के सही तरह से अंकुरण के लिये मृदा मे पर्याप्त नमी का होना बहुत जरूरी है। खेत मे नमी की कमी होने पर हल्की सिंचार्इ करना चाहिये। भूमि कैसी है उसी अनुसार 15-15 दिनों के अंतर से सिंचार्इ करें। खेत में फालतू पानी न जमा होने दे |पानी के जमा होने से फसल पीली होकर मरने लगती है
खाद का उपयोग
गोबर या कम्पोस्ट खाद खेत की तैयारी करते समय डाले ।यह दलहनी फसल है इसलिए फसल को कम नाइट्रोजन देने की आवश्यकता पड़ती है।रासायनिक खाद बीज बुंवार्इ के समय ही कतारों में दिया जाना चाहिये। अगर किसान उर्वरको की इस मात्रा को यूरिया, पोटाश के माध्यम से देना चाहता है तो 1 बोरी यूरिया, 5 बोरी पोटाश प्रति हेक्टेयर में दे सकता है|।
फसल की देख रेख
खेतो में अक्सर बुआई के बाद खरपतवार उग आती है उन्हें समय-समय पर साफ करे उखाड़ के फेके खेत को खरपतवार रहित रखे |जड़ का गलना सड़ना यह फसलो में होता है रोग के बचाव के लिए जैविक फफूँदनाशी से बीज, मृदा उपचार करना चाहिए।फसल-चक्र अपनाना चाहिए तथा फसल के रोग के लिए घुलनशील गंधक का छिड़काव करना चाहिए |खेत में दीमक दिखार्इ देने पर क्लोरपायरीफास 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचार्इ के पानी के साथ खेत में उपयोग करे।
अब मेथी की कटाई कैसे करते है
मेथी की कटाई इसके किस्मो पर निर्भर करता है।पहली कटाई मेथी की हरी अवस्था में चालू हो जाती है। मतलब बुआई के एक महीने बाद पौधे को भूमि सतह के पास से काटते है। दानो के लिये इसकी कटाई जब फसल पीली पड़ने लगे तथा पत्तियाँ गिर जायें एवं फलियो का रंग पीला पड़ जाये तो फसल की कटाई करनी चाहिए|