याद आई जब शकुंतला:
जिस मछली ने शकुन्तला की अँगूठी को निगल लिया था, एक दिन वह एक मछुआरे के जाल में आ फँसी। जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट अँगूठी निकली। मछुआरे ने उस अँगूठी को महाराज दुष्यंत के पास भेंट के रूप में भेज दिया। अँगूठी को देखते ही महाराज को शकुन्तला की याद आ गई और वे अपने द्वारा शकुन्तला के अपमान पर पश्चाताप करने लगे। महाराज ने शकुन्तला को बहुत खोजा किन्तु उसका पता नहीं चला।
महाराज और शकुन्तला का हुआ मिलाप:
कुछ दिनों के बाद जब महाराज दुष्यंत आकाश मार्ग से हस्तिनापुर लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें कश्यप ऋषि का आश्रम दिखा। ऋषि के दर्शनों के लिए वे वहाँ रुक गए। आश्रम में एक सुन्दर बालक एक भयंकर सिंह के साथ खेल रहा था। मेनका ने शकुन्तला को कश्यप ऋषि के पास लाकर छोड़ा था तथा वह बालक शकुन्तला का ही पुत्र था।
उस बालक को देख कर महाराज के हृदय में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। दुष्यंत स्वयं को न रोक सके और बालक को अपने गोद में उठा लिया। शकुन्तला महाराज दुष्यंत के पास आई। महाराज ने शकुन्तला को पहचान लिया। उन्होंने अपने कृत्य के लिए शकुन्तला से क्षमा प्रार्थना किया और कश्यप ऋषि की आज्ञा लेकर उसे अपने पुत्र सहित अपने साथ हस्तिनापुर ले आए।