हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश का एक रूप धूम्रकेतु है कहा जाता है ।भगवान गणेश के इसरूप की पूजा करने से मनोकामना पूर्ण हो सकती है इसलिए बड़ी आस्था से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश का दूसरा रूप है ।जिसमे गणेश जी हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद देते हुए देखे जा सकते है। आज हम बात करने जा रहे है भगवान गणेश की पूजा और दूर्वा का महत्व के बारे में।
ज्योतिष के अनुसार दूर्वा केतु गृह को संबोधित करती है। गणपति जी धुम्रवर्ण गृह केतु के देवता है ।और केतु गृह से पीड़ित जातकों को गणेशजी को दूर्वा चढ़ाना शुभ माना जाता है।
केतु गृह से पीड़ित जातकों :
11 दूर्वा या 2 दूर्वा का गणेश भगवान को अर्पित करना चाहिए दूर्वा बुधवार के दिन शाम सूर्यास्त पूर्व गणेशजी को अर्पित करना अच्छा माना जाता है।
इस प्रयोग को करने से भगवान गणेश आपके जीवन को संकल्प के साथ सुख-सफलता व शांति तथा ऊर्जा से भर देते है।
इसके अलवा ये भी कर सकते है:
”त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्”
इस मंत्र का जाप भी कर सकते है भगवान गणेश के सम्मुख इससे मानसिक शांति और सुख समृधि की प्राप्ति होती है