यह तो आप सभी जानते है की ब्रम्हा जी इस श्रृष्टि के रचना कार माने जाते है पर ये बात भी सत्य है की उनकी पूजा मन्दिरों में नही की जाती उसके पीछे भी एक कथा है। ब्रम्हा और विष्णु से ही जुडी है केतकी के फूल की कथा भी तो चलिए इसके पीछे की कथा जाने की क्यों नही चड़ते देवी देवता पर केतकी के फूल नीचे पढ़िए।
कथा इसप्रकार है :
एक बार ब्रम्हा जी और विष्णु में बहुत बड़ा विवाद छिड़ गया कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन है?एक तरफ सृष्टि के रचयिता होने के कारण से ब्रम्हा जी श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और दूसरी तरफ सृष्टि के पालनकर्ता होने के कारण भगवान विष्णु स्वयं को श्रेष्ट कह रहे थे तब अचानक वहां पर एक विराट लिंग प्रकट हुआ।
लिंग को देख कर दोनों आश्चर्य से देखने लगे और फिर दोनों ने यह निश्चय कर लिए कि जो इस लिंग के छोर का सबसे पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
फिर दोनों शिवलिंग का छोर ढूढंने निकले।पर दोनों को ही छोर नही मिला और वापस लौट कर आ गए पर ब्रम्हा जी ने चालाकी दिखाई उन्होंने वापस आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने एक केतकी के फूल को इस बात का साक्षी रखा है।जब विष्णु जी ने उस केतकी के फूल से पूछा तो उसने भी झूट बोल दिया की हा ब्रम्हा जी पहुच गए थे।
ब्रम्हा जी के असत्य कहने पर शिव स्वयं वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रम्हा जी का एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को भी श्राप दिया कि केतकी के फूलों का कभी भी पूजा में इस्तेमाल नहीं होगा।
शास्त्र अनुसार:
ब्रम्हा जी की बात मानकर केतकी के फूल ने झूट कहा, जिसका पता शिव जी को लग गया। इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रम्हा को श्राप दिया कि उनकी इस पृथ्वी पर कहीं भी पूजा नहीं की जाएगी और केतकी फूल का किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पूजा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।