King Shibi Hindi Story – पुराने समय पहले की बात है उशीनगर देश में एक बड़े ही दयालु और धर्मात्मा प्रवृत्ति के राजा राज्य करते थे। जिनका नाम राजा शिबी ( King Shibi ) था। उनके दरबार से कोई याचक खाली हाथ लौट जाए ऐसा संभव न था। शरणागत की वह हर संभव प्रयास कर इच्छा पूर्ण करते थे। इसी कारण उनके नगर की प्रजा उनसे संतुष्ट व प्रसन्न रहती थी।राजा भी अपनी संपत्ति का उपयोग परोपकार के कार्य वह प्रजा के हित के लिए किया करते थे।
धीरे-धीरे उनके परोपकार की ख्याति देवलोक तक पहुंचने लगी। एक बार देवराज इंद्र ने अग्नि देव के साथ मिलकर राजा शिबी की परीक्षा लेने की योजना बनाई।
इंद्रदेव ने बाज और अग्निदेव ने कबूतर का रूप धारण किया और भूलोक की और उड़ चले। कबूतर बाज से अपनी जान बचाते हुए शिबी के दरबार में जा पहुंचा जहाँ राजा अपने मंत्रियों के साथ कुछ आवश्यक चर्चा कर रहे थे। उधर बाज भी कबूतर का पीछा करता हुआ शिबी के दरबार में जा पहुंचा। बाज को देखकर कबूतर ने मनुष्य की भाषा में महाराज शिबी की गोद में छिपते हुए कहा – राजन! इस बाज से मेरे प्राणों की रक्षा करों। मैं आपकी शरण में हूँ। मुझ शरण आए की रक्षा करों।
महाराज शिबी ने कबूतर के ऊपर हाथ सहलाते हुए उसके प्राणों की बाज से रक्षा का आश्वासन दिया।
तभी दरबार में बैठे बाज ने कहा – नहीं महाराज! आप इसे अभयदान न दे। यह मेरा आहार है इसे खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा। अतः आप इसे मुझे सौप दें।
महाराज शिबी ने कहा – यह कबूतर अब मेरी शरणागत है इसके प्राणों की रक्षा करना अब मेरा धर्म है। भले ही इसके बदले तुम अपनी भूख मिटाने के लिए मेरे शरीर का मांस ले लो। मैं तुम्हे अभी इस कबूतर के वजन के बराबर मांस दिए देता हूँ।
शिबी ने दरबार में एक तराजू मंगवाया जिसके एक पलड़े में कबूतर को रखा और दुसरे पलड़े में अपनी एक जांघ का मांस काटकर रख दिया। काफी मांस रखने पर भी पलड़ा न हिला तो राजा ने ओर मांस काटकर रख दिया लेकिन फिर भी पलड़ा ज्यो का त्यों बना रहा। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन वह कबूतर की जान बचाने के लिए वचनबद्ध थे इसलिए उन्होंने अपनी दूसरी जांघ का मांस भी काटकर पलड़े में रख दिया। इस तरह महाराज शिबी ने धीरे-धीरे अपने दोनों पैर और एक भुजा काटकर पलड़े में रख दी लेकिन फिर भी कबूतर वाला पलड़ा हिल न सका।
यह देख राजा को बड़ी निराशा हुई। राजा समझ गया कि यह कोई साधारण पक्षी नहीं है। अंत में लहूलुहान राजा स्वयं पलड़े में जा बैठे और इस बार पलड़ा भारी होकर भूमि पर टिक गया और कबूतर का पलड़ा ऊपर उठ गया।
मेरे पुरे शरीर का मांस अब तुम्हारा भोजन है। आओ इसे ग्रहण करों, शिबी ने बाज से कहा।
महाराज शिबी का ऐसा त्याग देखकर बाज रूपी देवराज इंद्र और कबूतर बने अग्निदेव अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गए।
दोनों ने राजा शिबी की प्रशंसा की और उन्हें पहले के समान स्वस्थ कर यह आशीर्वाद दिया – शरणागत की रक्षा के लिए युगों-युगों तक आपका नाम अमर रहेगा।