यह कथा भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। सत्यनारायण भगवान की कथा लोगो में बहुत प्रचलित है। यह हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में है कुछ लोग मन्नत पूरी होने पर अथवा कुछ लोग नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं।
सत्यनारायण भगवान की पूजा
भगवान विष्णु को पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी – छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। सत्य का पालन न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं दंड के रूप में सम्पत्ति और बंधु के सुख से वंचित भी कर देते हैं।
सत्यनारायण भगवान की पुजा का सामान
इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है प्रसाद में मिठाई ली जाती हैं या आटे को भून कर सत्तू बनाया जाता है उसमें चीनी मिलाकर बनाया जाता है।
संख्या | श्री सत्यनारायण पूजा सामग्री सूची | मात्रा |
---|---|---|
1 | हल्दी | |
2 | रोली | |
3 | मोली | |
4 | धूपबत्ती | 1 पैकेट |
5 | गंगाजल | 100ml |
6 | आरती के लिए कपूर | 1 पैकेट |
7 | पान का पत्ता | 5 |
8 | आम का पत्ते (बन्दनवार बनाने के लिए) | 10 से 12 |
9 | फूलों की माला | 5 |
10 | फल | 5 प्रकार के |
11 | अक्षत (चावल) | 50gm |
12 | सुपारी | 5 |
13 | दीपक | 1 |
14 | बाती | 1 पैकेट |
15 | घी | 250gm |
16 | शहद | 50gm |
17 | दुबडा घास | 7-8 |
18 | नारियल | 1 |
19 | गोमूत्र | |
19 | तुलसी के पत्ते | 4-5 |
20 | दूध | 1 लीटर |
21 | दही | 250 ग्राम |
22 | चीनी | 100 ग्राम |
23 | पञ्च मेवा | 1 पैकेट |
24 | सत्यनारायण भगवान का चित्र | 1 |
भगवान सत्यनारायण की कथा
भगवान की कथा में सत्य युग में निष्ठावान सत्यनारायण का व्रत रखने वाले शतानन्द, लकड़ी बेचने वाला भील एवं राजा उल्कामुख निष्ठावान सत्यव्रती थे। इन सबने सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना करके सुखों की प्राप्ति की।
शतानन्द गरीब ब्राह्मण थे। भिख मांगकर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा की ।
लकड़ी बेचने वाला भील भी बहुत गरीब था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना की।
राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रतीथे। वे नियमित रूप से भद्रशीला नदी के किनारे सपत्नी सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना करते थे। सत्य आचरण ही उनके जीवन का मूलमन्त्र था।
साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वज स्वार्थ में मजबूर होकर भगवान सत्य नारायण का व्रत लिया था ।
साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। फिर भी व्रत पूजा करने का संकल्प लेता है सत्यनारायण पूजा का संकल्प लेने के बाद उसके परिवार में कलावती नामक कन्या का जन्म हुआ। कन्या के जन्म के बाद उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना नहीं की। उसने भगवान की पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी।
कन्या का विवाह हो गया पर विवाह पर भी उसने पूजा नही करवाई और दामाद के साथ व्यापार यात्रा पर चल पडा वहा रत्नसारपुर नामक स्थान में ससुर दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु ने कारागार में बंद कर दिया । किसी तरह ससुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो ससुर ने एक सजा देने वाले से से झूठ बोल दिया कि उसकी नाव में रत्न नहीं, मात्र लता-पत्र है। इस झूट के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अंतिम में मजबूर होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया।
इसी बीच साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना आई उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना कर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावतीको अपनी भूल की याद आई। तो वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया।
यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। तुंगध्वज न तो पूजा के स्थान पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अतिम में मजबूर होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान का व्रत लिया। तथा इसके बाद उनके जीवन में भी प्रशन्नता आई।
सत्य नारायण व्रत की मान्यता क्या है जाने
सत्यनारायण व्रत करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कल युग में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं,सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्य रूपी विष्णु भगवान कलयुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।