मधुर मधु-सौरभ जगत् को
मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता
वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता !
मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा !
चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा !
-महादेवी वर्मा
मधुर मधु-सौरभ जगत् को
मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता
वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता !
मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा !
चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा !
-महादेवी वर्मा