एक गांव में शामलाल नाम का एक अमिर व्यपारी रहता था उसने एक गधा और एक घोडा पाला हुआ था वह शहर से सामान खरीदता और उसे अपने घोड़े और गधे के उपर लाद कर अपने घर ले आता
उस सामान को वह आसपास के गांव में बेचता था ऐसा करने से उसे अच्छा लाभ हो जाता था
एक दिन शामलाल ने शहर से बहुत सारा सामान ख़रीदा और घोड़े की पीठ पर रख दिया उसने गधे की पीठ पर कुछ भी सामान नही रखा कुछ दूर चलकर रास्ते में घोड़े ने कहा गधे से भाई मेरी पीठ पर बहुत वजन रखा है
थोडा बोझ तुम भी अपनी पीठ पर ले लो ,, गधा बोला बोझा बहुत ज्यादा है या कम उससे मुझे कुछ लेना देना नहीं यह बोझ तुम्हारा है इसे तुम्हे ही उठाना है और चलना है,मुझे इसके बारे में कुछ मत कहो मै कुछ नहीं कर सकता
यह बात सुनकर घोडा चुप चाप चलने लगा थोड़ी देर बाद चलते चलते भारी बोझ होने के कारण घोड़े के पांव लड़खड़ाने लगे और वह रास्ते में गिर पड़ा उसके मुंह से झाग निकलने लगा
यह देख कर राम लाल ने घोड़े की पीठ का सारा वजन उतारा और गधे की पीठ पर लाद दिया अब चलते –चलते गधा सोचने लगा अगर मै पहले ही घोड़े की बात मान जाता तो कितना अच्छा होता अब इतना बोझ अकेले ही उठा कर लेजाना पड़ेगा
कहानी की सिख- दुसरो के दुःख दर्द में हाथ बटाने से हमारा दुःख दर्द कम हो जाता है यदि दुसरो का भला करोगे तो खुदका भला अपने आप हो जाता है