देवी राधा को पुराणों में श्री कृष्ण की जीवनसंगिनी बताया गया है। राधा और कृष्ण का प्रेम इस लोक का नहीं बल्कि अलौकिक है। सृष्टि के आरंभ से और सृष्टि के अंत होने के बाद भी दोनों नित्य तीनोलोक में वास करते हैं।लेकिन लौकिक जगत में श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम मानवी रुप में था और इस रुप में इनके मिलन और प्रेम की शुरुआत की बड़ी ही रोचक कथा है। एक कथा के अनुसार देवी राधा और श्री कृष्ण की पहली मुलाकात उस समय हुई थी जब देवी राधा ग्यारह माह की थी और भगवान श्री कृष्ण सिर्फ एक दिन के थे। मौका था श्री कृष्ण का जन्मोत्सव।
मान्यता है कि देवी राधा भगवान श्री कृष्ण से ग्यारह माह बडी थी और कृष्ण के जन्मोत्सव पर अपनी माता कीर्ति के साथ नंदगांव आई थी यहां श्री कृष्ण पालने में झूल रहे थे और राधा अपनी माता के गोद में थी। यह उस समय की बात है जब भगवान श्री कृष्ण नन्हे बालक थे। उन दिनों एक बार नंदराय जी बालक श्री कृष्ण को लेकर भांडीर वन से गुजर रहे थे।
उसी समय अचानक एक ज्योति प्रकट हुई जो देवी राधा के रुप में बदल गई। देवी राधा के दर्शन पाकर नंदराय जी आनंदित हो गए। राधा ने कहा कि श्री कृष्ण को उन्हें सौंप दें, नंदराय जी ने श्री कृष्ण को राधा जी की गोद में दे दिया।
फिर श्री कृष्ण बाल रूप त्यागकर किशोर अवस्था में आगए। तभी ब्रह्मा जी ने कृष्ण का विवाह राधा से करवा दिया। कुछ समय तक कृष्ण राधा के संग इसी वन में रहे। फिर देवी राधा ने कृष्ण को उनके बाल रूप में नंदराय जी को सौंप दिया।राधा कृष्ण की लौकिक मुलाकात और प्रेम की शुरुआत संकेत नामक स्थान से माना जाता है।