भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर में स्थित अजमेर शरीफ़ दरगाह प्रसिद्ध सूफ़ी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जिसमें उनका मक़बरा बना है। एक अंग्रेज लेखक कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि “मैंने हिन्दुस्तान में एक कब्र को राज करते देखा है।” जिसे सूफ़ी संत मोइनुद्दीन चिश्ती को ख्वाजा साहब या फिर गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है। दरगाह का बुलंद दरवाजा इस बात का गवाह हैं कि मुहम्मद-बिन-तुगलक, अल्लाउद्दीन खिलजी और मुगल अकबर तक बड़े से बड़ा सम्राट भी पूरे अदब के साथ सिर झुकाए ही आया है।
1911 में हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ाँ ने अजमेर शरीफ़ दरगाह के मुख्य द्वार का निर्माण करवाया था। इसी कारण दरगाह के मुख्य द्वार को निज़ाम गेट कहा जाता है। उसके बाद मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया शाहजहानी दरवाज़ा और अंत में सुल्तान महमूद ख़िल्जी द्वारा बनवाया गया बुलन्द दरवाज़ा आता है, यहाँ प्रति वर्ष ख़्वाजा चिश्ती के उर्स के अवसर पर झंडा चढ़ाकर समारोह किया जाता है।
यह दरगाह सिर्फ इस्लामी प्रचार का केंद्र नहीं अपितु हर मजहब के लोगों को आपसी प्रेम का संदेश देती है । इसकी मिसाल ख्वाजा के पवित्र आस्ताने में राजा मानसिंह का लगाया चांदी का कटहरा और ब्रिटिश महारानी मेरी क्वीन का अकीदत के रूप में बनवाया गया वजू का हौज हैं।
स्वतंत्रता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी ख्वाजा के दरबार में मत्था टेका था और ख्वाजा साहब के एक खादिम परिवार को बड़े ही सम्मान से ‘महाराज’ नाम दिया था। दरगाह में अब पहले से ज्यादा हिन्दू परिवार बिना किसी खौफ के रोजाना आते हैं। ख्वाजा के दर पर माथा टेकने वालों में ज्यादातर हिन्दू होते हैं क्योंकि अनुमान के अनुसार प्रतिदिन 20 से 22 हजार लोग अजमेर आते हैं जिसमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा गैर मुस्लिमों की संख्या होती है ।
इतिहास के मुताबिक भक्ति आंदोलन की तर्ज पर ही हिन्दुस्तान में सूफीवाद का जन्म हुआ और ईरान से चलकर हिन्दुस्तान की सरजमीं पर धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पहुंचे सूफी-संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शहर अजमेर को अपना उपासना स्थल और कर्मभूमि बनाया तो उन्हें महसूस हुआ कि यहां एकतरफा धर्म नहीं चल सकता अत: यहां इस्लामी सिद्धांतों को यहां की धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर आगे बढ़ना होगा। इसी दूरदर्शीता को ध्यान में रखते हुए महान सूफी ख्वाजा ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने सांप्रदायिक एकता, भाईचारगी और आपसी प्रेम का पाठ पढ़ाने का मिशन लेकर सूफी परंपरा आरंभ की।
दुनियाभर में धर्म के नाम पर संघर्ष और देशभर में सांप्रदायिक जहर फैलाने वाले तत्वों के बावजूद ख्वाजा की दरगाह में हिन्दू, जैन, सिख सभी तरह के विचार रखने वाले धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में यहाँ बड़े ही अदब से माथा टेकने आते हैं।