Ramadan 2019 Iftar Announcement Using Cannon In Raisen Madhya Pradesh : हिन्दू जैसे अपने त्यौहार दीपावली का इंतजार जिस बेसब्री से करते हैं ठीक उसी तरह हमारे मुस्लिम भाई भी रमजान में बेसब्री से ईद के चाँद का इंतजार करते हैं। ईद का त्यौहार मनाने के लिए मुस्लिम भाइयों के घरो में महीना भर तैयारियां चलती ही रहती है। ये तो सभी जानते हैं कि इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र महीने रमजान की शुरूआत चांद के दीदार के साथ होती है। रमजान का महीना मुस्लिम धर्म में एक खास महत्व रखता है। इस माह में दुनियाभर के इस्लाम को मानने वाले लोग पूरे महीने रोजा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं।
इस पवित्र महीने मे रोजा रखने वाले सुबह सूरज उगने से पहले तक सहरी करके रोजा रखने की शुरूआत करते हैं और शाम को सूरज छिपने के बाद इफ्तार करते हैं। रोजा रखने के दौरान पांचो वक्त की नमाज पढ़ते हैं व अल्लाह से दुआएं करते हैं। लेकिन एक स्थान ऐसा है जंहा तोप के धमाके के साथ रोजा खुलता हैं।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में रमजान के दौरान आज भी इफ्तार और सेहरी तोप के गोले की गूंज से शुरू और खत्म होती हैं। यह परंपरा भोपाल की बेगमों ने 18वीं सदी में चलाई थी। उस समय वह आर्मी की तोप से गोला दागा करते थे। तब शहर के काजी ही तोपों की देखरेख करते थे। भोपाल और सीहोर में पहले रमजान में तोप चलाई जाती थी लेकिन अब ये परंपरा यहाँ खत्म हो गई है।
बकायदा लाइसेंस जारी किया
पहले के जमाने में तोप काफी बड़ी हुआ करती थी लेकिन अब छोटी तोप चलाई जाती है। वहा के काजी बताते हैं कि पहले बड़ी तोप का इस्तेमाल होता था लेकिन किले को नुकसान न पहुंचे इसलिए अब इसे दूसरी जगह से चलाया जाता है। रायसेन में रमजान के दौरान चलने वाली तोप के लिए बकायदा लाइसेंस जारी किया गया है। आपको बता दे कि वहा के कलेक्टर तोप और बारूद का लाइसेंस केवल एक माह के लिए जारी करते हैं। इसे चलाने का एक माह का खर्च करीब 40,000 रुपए आता है। इस रकम को जोड़ने के लिए वहा लोग चंदा भी करते हैं और 5000 हजार तक रुपए नगर निगम देता है।
“सखावत उल्लाह” पर तोप की जिम्मेदारी
तोप को रोज एक महीने तक चलाने की जिम्मेदारी सखावत उल्लाह की है। वे रोजा इफ्तार और सेहरी खत्म होने से आधा घंटे पहले उस पहाड में पहुंच जाते हैं, जहां तोप रखी है और उसमें बारूद भरने का काम करते हैं। सखावत उल्लाह को नीचे मस्जिद से जैसे ही इशारा मिलता है कि इफ्तार का वक्त हो गया, वैसे ही वह गोला दाग देते हैं।
“सखावत उल्लाह” इसे बहुत अहम काम मानते हैं
वह बताते हैं कि “लोगों को मेरे तोप चलाने का इंतजार रहता है। तभी वे रोजा खोल सकते हैं।” पहले तोप की आवाज दूर-दूर तक सुनाई पड़ती थी लेकिन अब शोर-शराबे ने उसे कम कर दिया है। इसके बावजूद शहर और करीब के गांव के लोगों को गोला दागे जाने की आवाज का इंतजार सेहरी खत्म करने और रोजा खोलने के लिए रहता है।