एक बार ईरान का व्यापारी चाँद खाँ भारत में किसी निजी यात्रा पर आया था। इसलिए बहुत दिनों तक उसने भारत के अनेक नगरों का भ्रमण किया। एक दिन उसने गाँव से गुजरते वक्त एक व्यक्ति को गन्ना चुसते हुए देखा तो चाँद खाँ ने उस व्यक्ति से पूछा कि ये क्या हैं ? ईरान में गन्ने नहीं होते इसलिए उसे गन्ने के बारें में कुछ पता नहीं था। उस व्यक्ति ने भी मजाक में कह दिया। “इसे रसगुल्ले की जड़ कहते है” और यह बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं।
जब उस व्यक्ति ने ऐसा कहा तो चाँद खाँ ने उससे थोड़ा गन्ना मांगकर खाया। उसे गन्ना इतना पसंद आया कि वह ईरान वापस लौटते वक्त गन्ने भी साथ ले गया।
कुछ समय बाद चाँद खाँ व्यापारिक यात्रा पर दोबारा भारत आया लेकिन इस बार वह राजा कृष्णदेव राय का शाही मेहमान था। इसलिए उसकी बहुत अच्छी खातिरदारी हुई।
महाराज कृष्णदेव ने उस दिन रसगुल्ले बनवाएं थे ताकि शाही मेहमान को रसगुल्ले पसंद आएं जिससे वह और रसगुल्लों की फरमाइश करें। राजा ने चांदी की तरतरी में रसगुल्ले रखवाकर चाँद खाँ के पास भिजवा दिए लेकिन कुछ देर पश्चात ही दरबारी रसगुल्ले की तस्तरी वापस ले आया।
महाराज के पूछने पर दरबारी ने बताया कि शाही मेहमान को रसगुल्ले नहीं अपितु रसगुल्ले की जड़ चाहिए। दरबारी की बात सुन, दरबार में बैठे मंत्री, पुरोहित, राजा आदि सभी हक्के-बक्के रह गए। तभी तेनालीराम बोला- महाराज रसगुल्ले की जड़ होती है अगर आप आदेश दें तो मैं ये ला सकता हूँ।
राजा कृष्णदेव राय बोले – ठीक हैं तुम रसगुल्ले की जड़ लेकर आओ। हम कल ही शाही मेहमान की इच्छा पूरी करेंगे। अगले दिन तेनालीराम ने एक गन्ना खरीदा और उसे छिलवाकर छोटे-छोटे टुकड़ो में कटवा चांदी की तस्तरी में सजवा लिया और उसे मलमल के कपड़े से ढककर महल में ले गया। फिर महाराज के समीप जाकर बोला – इसमें रसगुल्ले की जड़ हैं। आप इसे शाही मेहमान को भिजवा दीजिए।
महाराज सहित सभी दरबारी भी आतुर थे कि आखिर रसगुल्ले की जड़ क्या होती हैं इसलिए महाराज ने कहा – जरा, कपड़ा हटाकर हमें भी तो दिखाओ ये हैं क्या?
तेनालीराम बोला महाराज! पहले ये जड़ शाही मेहमान को ही भेजी जाए। उनके खाने के बाद उसमें थोड़ा बहुत बचेगा तो आप सब देख सकते हैं ।
अंततः एक दरबारी को वह तस्तरी देकर शाही मेहमान के पास भेज दिया गया। तस्तरी देते हुए दरबारी बोला,”लीजिए, महाराज ने विशेषरूप से आपके लिए भिजवाई हैं ।”
शाही मेहमान ने बड़े ही चाव से उन टुकड़ों को चूस-चूसकर खाया । जब उसमें कुछ टुकड़े बच गए तो दरबारी तस्तरी लेकर महल में आ गया और सब को दिखाते हुए बोला -,”शाही मेहमान को जड़ बहुत पसंद आई और उसके लिए वो आपका बहुत आभारी हैं । ”
महाराज ने भी तस्तरी में पड़े गन्ने के टुकड़ों को देखा तो हैरान रह गए तब महाराज कृष्णदेव, तेनाली से पूछते हैं कि यह सब क्या है? क्या यही रसगुल्ले की जड़ हैं?
तेनालीराम समझाते हुए बताते हैं कि सभी मिठाईयां चीनी से बनती है और और चीनी गन्ने से बनती है, इसलिए रसगुल्ले की जड़ गन्ना ही है। महाराज और सभी दरबारियों को तेनालीराम का ये गणित बखूबी समझ आ जाता है।
महाराज कृष्णदेव मुस्कुराये और तेनालीराम को इनाम देते हुए कहा तुमने हमारी इज्ज़त बचा ली ये लो अपना इनाम।