एक नगर में एक बड़ा ही बुद्धिमान और धनी व्यापारी रहता था जिसका एक बेटा भी था। उसका बेटा बिल्कुल उसके उल्ट था जिसकी वजह से उसके दोस्त उसका फायदा उठाते रहते थे लेकिन वह फिर भी उन दोस्तों के साथ रहता और उनपर विश्वास किया करता था।
एक दिन व्यापारी ने अपने बेटे को सुधारने के लिए एक तरकीब सोची उसने अपने बेटे से कहा – हमें कुछ दिनों के लिए कुछ काम से विदेश जाना पड़ेगा इसलिए मैंने अपना सारा सामान इस बक्से में रख दिया हैं और इस पर तीन ताले भी लगा दिए हैं।
हम इस बक्से को अपने किसी विश्वासपात्र इंसान के पास रख देंगे। यह सुनकर उसका बेटा बोला पिताजी इसे मैं अपने मित्र के यहाँ रख देता हूँ। पिताजी ने कहा ठीक हैं, तुम अपने मित्र से पूछ लो की क्या वह इस बक्से को अपने पास रखने को तैयार हैं। वह अपने मित्र के पास गया और बक्सा रखने के लिए पूछा, उसका दोस्त खुशी से बोला – ” हाँ रख दो “। बक्सा अपने मित्र के यहाँ रख कर दोनों लोग विदेश चले गए। काम होने के बाद वे दोनों वापस अपने नगर को लौट आए। घर वापस आकर व्यापारी ने अपने बेटे को बक्सा लाने के लिए भेजा।
जब वह अपने दोस्त के घर गया तो उधर से बहुत ही गुस्से में अपने घर लौट आया और अपने पिता से कहने लगा – पिताजी जब आपको मेरे दोस्त पर विश्वास नही था तो आपने उस बक्से को वहां क्यूँ रखवाया। उस बक्से में तो कोई भी कीमती सामान नही हैं उसमे सिर्फ कंक्कड़ पत्थर भरे हुए थे।
व्यापारी अपने बेटे की बात सुनता रहा, जब वह चुप हुआ तो व्यापारी ने अपने बेटे से पूछा तुम्हे कैसे पता की उसमे कोई कीमती सामान नही हैं उस बक्से पर तो ताले लगे हुए थे। इसका मतलब की तुम्हारे दोस्त ने उसे अवश्य ही खोला होगा। अब तो तुम्हे समझ में आ गया होगा कि तुम्हारा मित्र कैसा इंसान हैं इसलिए जब तुम अपने मित्र के यहाँ पूछने गए थे। मैंने तभी उस बक्से में से कीमती सामान निकालकर उसमें कंक्कड़ पत्थर भर दिए थे।
बेटे को अपने पिता की बात समझ आ गयी उसने अपनी गलती मानते हुए कहा की पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिए आप मुझे समझाते रहे लेकिन मैं ही आप की बात नही समझ सका। अब मैं समझ गया हूँ कि अच्छी अच्छी बात करने वाला दोस्त ही सच्चा मित्र नही होता बल्कि जो दोस्त हर घड़ी में हमारे काम आ सके वो ही सच्चा मित्र होता हैं ।