शिव को प्रसन्न कर कोई भी व्यक्ति कठिन समय तथा संकटों से उबरकर सभी प्रकार के पारिवारिक एवं सांसारिक सुख आदि प्राप्त कर सकता है। महा शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को किया जाता है। कुछ लोग चतुर्दशी को भी यह व्रत करते हैं।
माना जाता है कि-
सृष्टि के प्रारंभ में इसी विधि को मध्य रात्रि में भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से ब्रह्मांड को समाप्त कर देते हैं। मां गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों एवं पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसान की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष और जटाओं में गंगा रखने वाले शिव अपने भक्तों का सदा मंगल करते हैं।
देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है-
यह व्रत कोई भी कर सकता है। बहुत से लोग महाशिवरात्रि को शिव विवाह के उत्सव के रूप में भी मनाते हैं। व्रत्रत का विधान प्रातःकाल स्नान, ध्यान आदि से निवृत्त होकर व्रत रखना चाहिए। पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ गौरीशंकर की स्वर्ण की और नंदी की रजत की मूर्ति रखनी चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मौली, चावल, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टे, धतूरे, बिल्व पत्र आदि का प्रसाद शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए।
रात को जागरण-
ब्राह्मणों से शिव स्तुति अथवा रुद्राभिषेक कराना चाहिए। जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ कल्याणकारी होता है। दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल, खीर तथा बेल पत्रों से हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत समाप्त होता है।
शिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है-
शिव महापुराण के अनुसार बहुत पहले अर्बुद देश में सुन्दरसेन नामक निषाद राजा रहता था। वह एक बार जंगल में अपने कुत्तों के साथ शिकार के लिए गया। पूरे दिन परिश्रम के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला। भूख प्यास से पीड़ित होकर वह रात्रि में जलाशय के तट पर एक वृक्ष के पास जा पहुंचा जहां उसे शिवलिंग के दर्शन हुए।
अपने शरीर की रक्षा के लिए निषाद राज ने वृक्ष की ओट ली लेकिन उनकी जानकारी के बिना कुछ पत्ते वृक्ष से टूटकर शिवलिंग पर गिर पड़े। उसने उन पत्तों को हटाकर शिवलिंग के ऊपर स्थित धूलि को दूर करने के लिए जल से उस शिवलिंग को साफ किया। उसी समय शिवलिंग के पास ही उसके हाथ से एक बाण छूटकर भूमि पर गिर गया। अतः घुटनों को भूमि पर टेककर एक हाथ से शिवलिंग को स्पर्श करते हुए उसने उस बाण को उठा लिया। इस प्रकार राजा द्वारा रात्रि-जागरण, शिवलिंग का स्नान, स्पर्श और पूजन भी हो गया।
प्रात: काल होने पर निषाद राजा अपने घर चला गया और पत्नी के द्वारा दिए गए भोजन को खाकर अपनी भूख मिटाई। यथोचित समय पर उसकी मृत्यु हुई तो यमराज के दूत उसको पाश में बांधकर यमलोक ले जाने लगे, तब शिवजी के गणों ने यमदूतों से युद्ध कर निषाद को पाश से मुक्त करा दिया। इस तरह वह निषाद अपने कुत्तों से साथ भगवान शिव के प्रिय गणों में शामिल हुआ।