॥ दोहा॥
जय जय श्री महालक्ष्मी करुँ मात तव ध्यान ।
सिद्ध काज मम कीजिए निज शिशु सेवक जान ॥
॥ चौपाई ॥
नमो महा लक्ष्मी जय माता, तेरो नाम जगत विख्याता ।
आदि शक्ति हो मात भवानी, पूजत सब नर मुनि ज्ञानी ॥1॥
जगत पालिनी सब सुख करनी, निज जनहित भण्डारन भरनी ।
श्वेत कमल दल पर तव आसन, मात सुशोभित है पदमासन ॥2॥
श्वेताम्बर अरु श्वेता भूषन, श्वेतहि श्वेत सुसज्जित पुष्पन ।
शीश छत्र अति रुप विशाला, गल सौहे मुक्तनकी माला ॥3॥
सुन्दर सोहे कुंचित केशा, विमल नयन अरु अनुपम भेषा ।
कमलनाल समभुज तवचारी, सुरनर मुनिजनहित सुखकारी ॥4॥
अद्भुत छटा मात तवबानी, सकलविश्व कीन्हो सुखखानी ।
शांतिस्वभाव मृदुलतव भवानी, सकल विश्र्वकी होसुखखानी ॥5॥
महालक्ष्मी धन्य हो माई, पंच तत्व में सृष्टि रचाई ॥
जीव चराचर तुम उपजाए, पशु पक्षी नर नारि बनाए ॥6॥
क्षितितल अगणित वृक्षजमाए, अमितरंग फल फूल सुहाए ।
छवि बिलोक सुरमुनि नरनारी, करे सदा तव जय जय कारी ॥7॥
सुरपति औ नरपत सब ध्यावैं, तेरे सम्मुख शीश नवावैं ।
चारहु वेदन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया ॥8॥
जापर करहु मातु तुम दाया, सोई जग में धन्य कहाया ।
पल में राजहि रंक बनाओ, रंक राव कर बिलम न लाओ ॥9॥
जिन घरकरहु माततुम बासा, उनका यश हो विश्र्व प्रकाशा ।
जो ध्यावै सो बहु सुख पावै, विमुख रहै हो दुख उठावै ॥10॥
महालक्ष्मी जन सुख दाई, ध्याऊं तुमको शीश नवाई ।
निजजन जानिमोहिं अपनाओ, सुखसम्पति दे दुख नसाओ ॥11॥
ओंम श्री श्री जयसुखकी खानी, रिद्धिसिद्ध देउ मातजनजानी ।
ओंमहृीं हृीं सब ब्याधिहटाओ, जनउन बिमल दृष्टिदर्शाओ ॥12॥
ओंम क्लीं क्लीं शत्रुन क्षयकीजै, जनहित मात अभय वरदीजै ।
ओंम जयजयति जयजननी, सकलकाज भक्तन के सरनी ॥13॥
ओंम नमो नमो भवनिधि तारनी, तरणि भंवर से पार उतारनी ।
सुनहु मात यह विनयहमारी, पुरवहु आशन करहु अबारी ॥14॥
रिणी दुखी जो तुमको ध्यावै, सो प्राणी सुख सम्पति पावै ।
रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई, ताकी निर्मल काया होई ॥15॥
विष्णु प्रिया जय जय महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी ।
पुत्रहीन जो ध्यान लगावै, पाए सुत अतिहि हुलसावै ॥16॥
त्राहि त्राहि शरणागत तेरी, करहु मात अब नेक न देरी ।
आवहु मात विलम्बन कीजै, हृदय निवासभक्त बर दीजै ॥17॥
जानू जप तप का नहिं भेवा, पार करौ भवनिध बिन खेवा ।
बिनवों बार-बार कर जोरी, पूरण आशा करहु अब मेरी ॥18॥
जानि दास मम संकट टारौ, सकल व्याधि से मोहिं उबारौ ।
जो तव सुरति रहै लव लाई, सो जग पावै सुयश बडाई ॥19॥
छायो यश तेरा संसारा, पावत शेष शम्भु नहिं पारा ।
गोविंदनिशदिनशरणतिहारी, करहुपूरण अभिलाष हमारी ॥20॥
॥ दोहा ॥
महालक्ष्मी चालीसा, पढ़ै सुने चित्त लाय।
ताहि पदारथ मिलै अब, कहै वेद यश गाय॥
॥ इति श्री महालक्ष्मी चालीसा ॥