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पर्वत हिमालय हमारा “कितनी सदिया बीत चुकी है।... more
विनती तन से मन से और बुधि से हम बहुत बड़े हो,पर्वत... more
कौन इतने उचे नील गगन में , तारो को चमकाता कौन? साँझ... more
मधुशाला – किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती... more
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ रतनारी हो थारी... more
नर हो, न निराश करो मन को नर हो, न निराश करो मन को कुछ... more
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा... more
तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये पत्थर ये चट्टानें ये झूठे बंधन... more
मधुर मधु-सौरभ जगत् को मधुर मधु-सौरभ जगत् को... more
मुझे फूल मत मारो मुझे फूल मत मारो, मैं अबला बाला... more
मधुशाला उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,... more
कुदरत हमको रोज सिखाती जग हित में कुछ करना सीखे... more