इस कहानी में आप जानेंगे कैसे तेनालीराम ने अपनी चतुराई से राजा कृष्णदेव की खोई अंगूठी ढूंढ निकाली।
एक बार राजा कृष्णदेव राय को दरबारियों ने बताया की महाराज आजकल तेनालीराम को ज्योतिष करने का शौक चढ़ गया हैं और वो सब से कह रहे हैं कि वो मंत्रों के हेर फेर से कुछ भी कर सकते हैं। दरबारियों की बात सुनकर राजा बोले ठीक हैं तो आज हम उसे दरबार में आजमा कर देखते हैं। तेनालीराम को आजमाने के लिए राजा ने अपनी अंगूठी अपने दरबारी को छुपाने के लिए दे दी। इतने में तेनालीराम भी दरबार में पहुँच गए ।
तेनालीराम के पहुँचते ही राजा ने कहा तेनालीराम हमारी अंगूठी कही खो गयी हैं और हमने सुना हैं की तुम मंत्रों से कुछ भी कर सकते हो तो तुम हमारी अंगूठी ढूंढकर हमें दे दो।
राजा की ये बात सुनकर तेनालीराम समझ गए की ये सब दरबारियों का काम हैं। उन्होंने ही राजा के कान भरे हैं।
तेनालीराम मन ही मन विचार करने लगे कि अब राजा ने कहा हैं तो उन्हें अंगूठी तो ढूंढनी ही पड़ेगी। फ़िर क्या था उन्होंने भी एक कागज़ पर टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें बना दी और राजा से कहा महाराज आप अपना हाथ यहाँ रख दीजिए अंगूठी अपने आप ही आपकी अंगुली में आ जाएगी ।
इतना कहकर तेनालीराम ने मंत्र पढ़ते हुए चावल दरबारियों की ओर फेंकने शुरू किए। जिस दरबारी के पास अंगूठी थी, वह सोचने लगा कि कही सच में ही तो तेनालीराम के मंत्रों से अंगूठी जेब से निकलकर चली जाए। यह सोचकर उसने जिस जेब में अंगूठी रखी थी उसे कसकर पकड़ लिया। तेनालीराम यह सब देख रहे थे। वो बोले महाराज अंगूठी तो मिल गई हैं लेकिन दरबारी ने कसकर पकड़ रखी हैं।
राजा तेनालीराम का संकेत समझ गए और हँस पड़े । उन्होंने दरबारी से अंगूठी लेकर तेनालीराम को इनाम में दे दी और चुगली करने वाले देखते रह गए।