जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव का यह मंदिर गुजरात के वडोदरा में है यह मन्दिर स्तंभेश्वर नाम से बहुत ही प्रसिद्ध है स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार थोड़ी सी देर के लिए गाएब होता है और वापस भी आ जाता है।
इसके पीछे है एक कथा:
कथाओ के अनुसार राक्षक ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर लिया था। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए तो उसने वरदान मांगा कि मुझे सिर्फ आपका ही पुत्र मार सके वो भी छह दिन की आयु का हो अन्य कोई मेरा वध न कर सके । भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया था।
वरदान मिलने के बाद दैत्य ताड़कासुर ने हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान कर दिया। सभी देवता दुखी होकर महादेव की शरण में पहुंचे। तब महादेव ने देवताओ को कहा की उनका पुत्र ही इस दैत्य का वध करेगा। इसके बाद कार्तिकेय ने ही मात्र 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया था जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था, तो उनका मन व्याकुल हो उठा तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि आपने जहा उसका वध किया था वही एक शिवालय बनवा दें। इससे आपका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
क्या है जो ऐसा होता है इस मन्दिर में:
आपको चौकने की जरूरत नही यह मन्दिर समुद्र में स्थित है समुद्री लहरे जब तेज उठती है तो मन्दिर को डुबो देती है ,समुद्र में ज्वारभाटा उठने के कारण होता है ऐसा । ज्वार भाटा के चलते आप मंदिर के शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते हैं, जब समुद्र का प्रवाह कम हो उसकी लहरे शांत हो तो आप इस मन्दिर के दर्शन कर सकते है।ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से डूब जाता है जाता है और मंदिर तक कोई नहीं पहुंच सकता। यह सदियों से होता आ रहा है।
इस मन्दिर का पता लगा:
इस मंदिर को सो डेडसो साल पहले खोज के निकाला गया था।इस मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है।
ज्वार भाटे के आने की सुचना दी जाती है पहले ही:
पर्चे बाटकर सुचना दी जाती है ताकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना न करना पड़े।