माँ पार्वती तथा महादेव के पुत्र श्री गणेश के बारे में रोचक कथा वैसे तो श्री गणेश का पूर्ण जीवन ही रोचक घटनाओं से भरा है भगवान गणेश जी को सबसे प्रथम पूजा जाता है उन्हें यह वरदान स्वयं शिव जी ने दिया था की उनके पहले पूजा किए बिना कोई भी पूजा सम्पन्न नही होगी,वैसे तो हर पूजा में भगवान को तुलसी चढ़ाना बहुत पवित्र माना जाता है। तुलसी को औषधीय गुणों वाला पौधा भी माना जाता है। पर भगवान गणेश की पूजा में पवित्र तुलसी का प्रयोग करना वर्जित है।
इसके पीछे की कथा जाने
एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। माँ तुलसी तभी विवाह की इच्छा लिए तीर्थ यात्रा पर निकली तुलसी वहां पहुंची जहा भगवान गणेश तप में बैठे थे । माँ तुलसी ने श्री गणेश को देखा और उनके रूप पर मोहित हो गई। तुलसी माँ ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब भगवान श्री गणेश ने तप भंग करने को अशुभ बताया और अपने ध्यान से तुलसी की मंशा जानकर उन्होंने तुलसी माँ से कहा की मै तो ब्रम्हचारी हु मै आपसे विवाह नही कर सकता और उनके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया।
इस बात से दु:खी होकर तुलसी माँ ने गणेश जी को श्राप दिया की जाओ तुम्हारे दो विवाह हो ।यह सुनकर गणेश जी को भी क्रोध आया और उन्होंने भी श्राप दिया तुलसी माँ को की तुम्हारी संतान असुर होगी।राक्षस की माता बनो फिर तुलसी माँ को अपनी गलती का अहसास हुआ। राक्षस की मां होने का श्राप सुनकर तुलसी माँ ने श्री गणेश से माफी मांगी। तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारी संतान शंखचूर्ण राक्षस होगा।
किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी। पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा। इसलिए मेरी किसी भी पूजा में तुम्हे सामिल करना वर्जित होगा।
तभी से यह प्रथा है की भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है।