गेहूँ उत्पादन में सबसे पहला नम्बर चीन है इसके बाद भारत तथा अमेरिका आता है ।गेहू को कई रूप में उपयोग में लाया जाता है| गेहू का उत्पादन बहुत जरुरी है गेहू की खेती से किसानो को काफी लाभ भी होता है तो आइए जाने कैसे करे खेती गेहू की
गेहू की खेती के लिए पर्याप्त मौसम
गेहूँ के लिए ठण्डी एवं शुष्क मौसम की आवश्कता होती है बोने के लिए ताकि गेहू की उपज बढ़े ।बाली लगने के समय पाला पड़ने पर बीज अंकुरण शक्ति खो देते है और उसका विकास रूक जाता है | इसकी खेती के लिए बर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते है। ठण्डा शीतकाल तथा गर्म ग्रीष्मकाल गर्म एवं नम जलवायु गेहूँ के लिए उचित नहीं होती, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में फसल में रोग अधिक लगते है।
अब फसल लगाने की तैयारी
अच्छी फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। नमी संरक्षण के लिए जुताई भी आवश्यक है। बोआई के समय खेत में खरपतवार ना हो, भूमि में नमी हो तथा मिट्टी इतनी भुरभुरी हो जाये ताकि बोआई आसानी से उचित गहराई तथा समान दूरी पर की जा सके।
गेहू के लिए कैसी ज़मीन चुने
गेहूँ सभी प्रकार की भूमियों में पैदा हो सकती है परन्तु दोमट से भारी दोमट, जलोढ़ मिटटी में गेहूँ की खेती अच्छे से की जाती है। जल की सुविधा होने पर मटियार दोमट तथा काली मिट्टी में भी इसकी अच्छी फसल ली जा सकती है।
गेहूँ की कुछ किस्में
रतन,नर्मदा,अरपा,मेघदूत,सुजाता,सोनाली
गेहू की फसल लगाने का समय
गेंहूँ रबी की फसल है जिसे शीतकालीन मौसम में उगाया जाता है । भारत के विभिन्न भागो में गेहूँ का जीवन काल भिन्न-भिन्न रहता है । सामान्य तौर पर गेहूं की बोआई अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है तथा फसल की कटाई फरवरी से मई तक की जाती है । अच्छी उपज प्राप्त होती है।
बीज कैसे बोये
बीजो को गहरा नही बोना चाहिए यदि इन्हे गहरा बो दिया जाता है तो अंकुरण बहुत कम होता है। अतः इनकी बोने की गहराई 5 सेमी. रखनी चाहिये।
बोने की विधि
गेहूं बोआई के लिए निम्न विधियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैः
छिटकना विधि
इस विधि में बीज को हाथ से समान रूप से खेत में छिटक दिया जाता है
देशी हल चलाकर बीज को मिट्टी से ढक दिया जाता है।
इस विधि से बोये गये गेहूँ का अंकुरण ठीक से नही हो पाता, पौध अव्यवस्थित ढंग से उगते है, बीज अधिक मात्रा में लगता है और गुड़ाई में भी परेशानी होती है|
हल के पीछे कूड़ द्वारा
गेहूँ बोने की यह सबसे अधिक प्रचलित विधि है ।बुआई तब की जाती हैजब खेत में पर्याप्त नमी रहती हो ।
देशी हल के पीछे बनी कूड़ो में जब एक व्यक्ति खाद और बीज मिलाकर हाथ से बोता चलता है तो इस विधि को केरा विधि कहते है ।
हल के घूमकर दूसरी बार आने पर पहले बने कूँड़ कुछ स्वंय ही ढंक जाते है
सीड ड्रिल द्वारा
विस्तृत क्षेत्र में बोआई करने के लिये यह आसान तथा सस्ता ढंग है ।
इसमे बोआई बैल या ट्रेक्टर द्वारा की जाती है।
इस विधि से बीज भी कम लगता है और बोआई निश्चित दूरी तथा गहराई पर सम रूप से हो पाती है जिससे अंकुरण अच्छा होता है ।
खाद देना
फसल की अच्छी पैदावार खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है ।
गेहूँ में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है ।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूँ की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि पर निर्भर करती है।
अच्छी उपज लेने के लिए गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद नीम की खली आदि इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई से पहले इसे खेतो में फैला दे इसके बाद खेत में अच्छी तरह से जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुआई करे
सिंचाई कब करे
सिंचाईयो की संख्या और पानी की मात्रा मृदा और वायुमण्डल पर निर्भर करती है|
पहली सिंचाई बोने के 20 दिन पर सिंचाई करना चाहिये।
दूसरी सिंचाई अंकुर निकलने पर करना चाहिए इसी तरह समय समय पर जरूरत अनुसार करना चाहिए सिचाई
खरपतवार नियंत्रण
गेहूँ के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर आ जाते है
इन पर नियंत्रण नही किया गया तो गेहूँ की उपज में हानि संभावित है।
गेहूँ के खेत में घास उग आते है। तथा गेहूँ में जंगली जई व गेहूँसापौधे अधिक देखा उग आते है
कटाई कब करे
जब गेहूँ के दाने पक कर सख्त हो जाय तब फसल की कटाई करनी चाहिये।
कटाई हँसिये से की जाती है।
कटाई में देरी करने से, दाने झड़ने लगते है और पक्षियों द्वारा नुकसान होने की संभावना रहती है।