कथा अनुसार
एक बार शंकरजी और पार्वतीजी ने विचार किया कि हमारे दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय अब विवाह योग्य हो गये हैं। दोनों को बुलाकर शंकरजी ने कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा उसका ही विवाह सबसे पहले होगा। कार्तिकेयजी पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिये पर बुद्धिमान गणेशजी ने माता पिता को आसन पर बिठाकर उनकी सात बार परिक्रमा की।
इस तरह गणेशजी ने अपने विवाह की योग्यता प्रमाणित की। प्रजापति विश्वरूप को जब इसका पता चला तो वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी पुत्रियों सिद्धि और रिद्धि का विवाह गणेशजी से कर दिया।
गणेशजी के पत्नी सिद्धि से क्षेम और रिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हुए। गणेशजी के परिवार के स्मरण-चिन्तन से सिद्धि, बुद्धि, क्षेम और लाभ की सहज प्राप्ति होती है।