तेनालीराम और महाराज कृष्णदेवराय की रोचक कहानियों में अब तक आपने पढ़ा “गेहूं वही बोएगा जिसको कभी उबासी न आई हो..”। आज आप पढेंगे बाढ़ और राहत बचाव कार्य कहानी। इस कहानी में महाराज कृष्णदेव राय का एक मंत्री बाढ़ के नाम पर राहतकार्य के लिए शाही धन को लेकर मौज करता हैं. लेकिन तेनालीराम बड़ी ही सूझ बुझ से मंत्री जी की इस हेरा फेरी को महाराज के सामने पकडवा देता हैं ।
एक बार विजयनगर में बाढ़ के कारण गावं के गावं पानी में डूब गए जिसकी वजह से गावं के लोगो का काफी नुकसान हो गया। जब महाराज कृष्णदेव राय को इस प्राकृतिक आपदा के बारें में बताया गया तो उन्होंने फ़ौरन एक मंत्री को राज्यभर में राहत कार्य शुरू करने को कहा। महाराज ने राहतकार्य के लिए शाही कोष से धन निकालने और नदी-नालों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ पीड़ित प्रजा को भोजन और चिकित्सा का प्रबंध करने के लिए आदेश दिया।
मंत्री ने शाही कोष से राहत के नाम पर काफी धन निकाला और लम्बे समय तक दरबार में उपस्थित नहीं हुआ। महाराज और अन्य दरबारियों को लगा की मंत्री जी दिन-रात लोगों तक सहायता पहुँचाने में लगे होंगे।
उधर तेनालीराम को मंत्री जी पर शक हुआ। इसलिए वो दिन में दरबार में उपस्थित रहते और रात को घूम-घूमकर कर देखने लगे कि आखिर मंत्री जी ने कहाँ और कितना राहत कार्य किया हैं।
जब काफी दिन बीत गए तब जाकर मंत्री जी दरबार में हाजिर हुए। और अपने किए हुए राहत कार्यो का बखान करने लगे। महाराज भी उनकी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और तेनालीराम कि तरफ देखते हुए मंत्री की कर्मठता के बारें में पूछने लगे। तेनालीराम ने भी महाराज के सामने मंत्री जी की प्रशंसा कर दी।
कुछ समय पश्चात जब दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई और सभी दरबारी भी चले गए। तब तेनालीराम चुपचाप वही अपने स्थान पर बैठा रहा। तेनालीराम को बैठा देख महाराज कृष्णदेव राय ने उसके रुकने का कारण पूछा। तेनालीराम बोला, “महाराज! मंत्री जी ने तो अपना राहत कार्य कर दिया अगर अब आप प्रजा से मिलेंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।” महाराज को तेनाली का यह सुझाव बेहद पसंद आया और उन्होंने अगले दिन तेनाली के साथ बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने की योजना बनाई।
अगले दिन तेनालीराम महाराज संग अपने घोड़े पर सवार होकर दौरे पर चल दिए। कुछ दूर चलने पर महाराज की नजर शाही बाग़ के पेड़ों पर पड़ी। जहाँ बाग़ के सुंदर-सुंदर वृक्ष गायब थे। राजा कृष्णदेव राय ने चौककर तेनालीराम से उन पेड़ों के बारें में पूछा।
तेनालीराम ने तंज कसते हुए कहा – महाराज कहीं बाढ़ के साथ पेड़ बह तो नहीं गए या फिर तेज हवा के साथ उड़ गए होंगे?
महाराज चुप हो गए और आगे बढ़ गए। थोड़ी दूर चले तो देखा, “ नाले पर पुल बनवाने की जगह पेड़ के तने रखे गए थे। “ फिर महाराज गुस्से में बोले, “ उस मंत्री ने ऐसे पुल बनवाए हैं। वैसे भी ये तो शाही बाग़ के पेड़ों के तने है।”
तेनाली ने फिर चुटकी लेते हुए कहा, “ महाराज ऐसा भी तो हो सकता हैं कि बाढ़ में ये तने बहकर यहाँ अटक गए हो। हो सकता है मंत्रीजी ने आगे नालों पर पुल बनवाए हो?”
कुछ दूर और आगे चलकर वो दोनों एक गावं में पहुँच गए। जहाँ पर अभी भी पानी भरा था और बेचारे लोग भूखे प्यासे दिन काट रहे थे। कुछ मचानो पर तो कुछ लोग झोपड़ियों की छापरेलों पर अटके पड़े थे। तेनालीरामन ने उन लोगों की और इशारा करते हुए कहा, “देखिए! महाराज मंत्री जी ने इन लोगों को पेड़ों पर टांग दिया हैं ताकि आने वाले समय में बाढ़ ये इन्हे कोई नुकसान न हो।” इतना सुनते ही महाराज गुस्से से तिलमिला उठे और फ़ौरन महल लौटकर मंत्री को बुलवाकर फटकार लगाई और राहत कार्य के नाम पर निकाले गए शाही धन को वापस राजकोष में जमा करने का आदेश दिया।
महाराज ने राहत कार्य का काम तेनालीरामन के ऊपर छोड़ दिया और धन का हिसाब-किताब भी तेनाली को सौप दिया। बेचारा मंत्री शर्म के मारे मुंह लटकाए खड़ा रहा।