Ekadashi Vrat 2021- हिन्दू धर्म में जिस प्रकार अनेकों देवी-देवता हैं। उसी तरह कई प्रकार के व्रत-उपवास करने का विधान है। किन्तु इन सबसे परे हैं “एकादशी का व्रत”। शास्त्रानुसार एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) पुण्यों को बढ़ाने वाला तथा मनुष्य द्वारा किए पाप कर्मों को नष्ट करने वाला अति उत्तम व्रत है। यह एकादशी का उपवास भगवान श्री हरि (जो क्रमशः शंख, चक्र, गदा एवं पद्म से सुशोभित हैं) को समर्पित है जिसे घर या मंदिर में विधि अनुसार किया जा सकता है।
एकादशी व्रत – सभी एकादशी तिथियाँ, व्रत विधि नियम व व्रत का भोजन
- 1. कब आती है एकादशी तिथि
- 2. वर्षभर में मनाई जाने वाली सभी एकादशी तिथियाँ – List Of All Ekadashi Tithi
- 3. एकादशी व्रत कैसे प्रारंभ हुआ? एक कथानुसार – Beginning of Ekadashi fast Pauranik Katha
- 4. कब शुरू करें एकादशी का व्रत
- 5. कैसे करें एकादशी का व्रत – How to Start Ekadashi Vrat
- 6. एकादशी व्रत की विधि – Ekadashi Vrat Vidhi
- 7. एकादशी व्रत के नियम – Ekadashi Fast Rules
- 8. एकादशी व्रत का भोजन – Ekadashi Vrat Food
कब आती है एकादशी तिथि
Ekadashi Tithi: हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की पूर्णिमा और अमावस्या के बाद आने वाला 11वां दिन एकादशी का होता है। एक महीने में 2 प्रकार की एकादशी तिथियाँ आती है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी। जो एकादशी तिथि पूर्णिमा के बाद आती है वह कृष्ण पक्ष की एकादशी कहलाती है। और अमावस्या में बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है।
इस तरह कुल मिलकर एक वर्ष में 24 एकादशियाँ होती हैं। किन्तु अधिकमास (मलमास/पुरुषोत्तम मास) वाला वर्ष आने पर इनकी संख्या बढ़कर 24 से 26 हो जाती हैं।
वर्षभर में मनाई जाने वाली सभी एकादशी तिथियाँ – List Of All Ekadashi Tithi
पूरे वर्ष में कितनी एकादशी तिथि होती है? इसकी जानकारी आपको नीचे ekadashi का नाम, मास व पक्ष के क्रम में दी जा रही है। तथा साल 2022 में किस तारीख को कौनसी एकादशी का व्रत किया जाएगा? इसकी पूरी लिस्ट यहाँ क्लिक करके देखें।
क्रमांक | एकादशी का नाम | मास | पक्ष |
1 | उत्पन्ना एकादशी | मार्गशीर्ष मास | कृष्ण पक्ष |
2 | मोक्षदा एकादशी | मार्गशीर्ष मास | शुक्ल पक्ष |
3 | सफला एकादशी | पौष मास | कृष्ण पक्ष |
4 | पुत्रदा एकादशी | पौष मास | शुक्ल पक्ष |
5 | षटतिला एकादशी | माघ मास | कृष्ण पक्ष |
6 | जया एकादशी | माघ मास | शुक्ल पक्ष |
7 | विजया एकादशी | फाल्गुन मास | कृष्ण पक्ष |
8 | आमलकी एकादशी | फाल्गुन मास | शुक्ल पक्ष |
9 | पापमोचनी एकादशी | चैत्र मास | कृष्ण पक्ष |
10 | कामदा एकादशी | चैत्र मास | शुक्ल पक्ष |
11 | वरूथिनी एकादशी | वैशाख मास | कृष्ण पक्ष |
12 | मोहिनी एकादशी | वैशाख मास | शुक्ल पक्ष |
13 | अपरा एकादशी | ज्येष्ठ मास | कृष्ण पक्ष |
14 | निर्जला एकादशी | ज्येष्ठ मास | शुक्ल पक्ष |
15 | योगिनी एकादशी | आषाढ़ मास | कृष्ण पक्ष |
16 | देवशयनी एकादशी | आषाढ़ मास | शुक्ल पक्ष |
17 | कामिका एकादशी | श्रावण मास | कृष्ण पक्ष |
18 | पुत्रदा एकादशी | श्रावण मास | शुक्ल पक्ष |
19 | अजा एकादशी | भाद्रपद मास | कृष्ण पक्ष |
20 | पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशी | भाद्रपद मास | शुक्ल पक्ष |
21 | इंदिरा एकादशी | आश्विन मास | कृष्ण पक्ष |
22 | पापांकुशा एकादशी | आश्विन मास | शुक्ल पक्ष |
23 | रमा एकादशी | कार्तिक मास | कृष्ण पक्ष |
24 | प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी | कार्तिक मास | शुक्ल पक्ष |
25 | परमा एकादशी | अधिक (पुरुषोत्तम) मास (3 वर्ष में एक बार) | कृष्ण पक्ष |
26 | पद्मिनी (कमला) एकादशी | अधिक (पुरुषोत्तम) मास (3 वर्ष में एक बार) | शुक्ल पक्ष |
एकादशी व्रत कैसे प्रारंभ हुआ? एक कथानुसार – Beginning of Ekadashi fast Pauranik Katha
विष्णु पुराण में वर्णित एक कथानुसार जब मुर नामक दैत्य के आतंक से सभी देवता परेशान हो गए थे तब देवताओं ने उस राक्षस का अंत करने की इच्छा से भगवान विष्णु की शरण ली और देवताओं के निवेदन पर विष्णु भगवान का मुर राक्षस के साथ कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। भगवान विष्णु थक कर विश्राम करने के लिए बद्रीनाथ आश्रम की गुफा में चले गए।
तब राक्षस भी विष्णु भगवान का पीछा करता हुआ बद्रीकाश्रम पहुंच गया। इस दैत्य ने निद्रा में लीन श्री हरि को मारना चाहा। तभी भगवान के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और इस देवी ने उस असुर का वध कर दिया। देवी के इस कार्य से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उस देवी से कहा – तुम्हारा जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ है इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। आज से प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी।
इसी दिन से एकादशी व्रत का आरम्भ माना जाता है तथा पहली एकादशी का व्रत उत्पन्ना एकादशी से शुरू होता है।
कब शुरू करें एकादशी का व्रत
एकादशी व्रत रखने से पूर्व मन में यह प्रश्न अवश्य आता है कि एकादशी व्रत कब से शुरू करना चाहिए?
इसका उत्तर यह है – व्रत रखने के इच्छुक व्यक्ति को हिंदी पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से आरंभ कर पुरे वर्ष में आने वाली सभी 24 एकादशियों का व्रत पूर्ण श्रध्दा के साथ करना चाहिये। एकादशी एक देवी है जिनकी उत्पत्ति मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को श्री हरि के द्वारा हुई थी जिस कारण उनका नाम उत्पन्ना एकादशी/Utpanna Ekadashi पड़ा और तभी से एकादशी व्रत का प्रारंभ हुआ माना जाता है।
कैसे करें एकादशी का व्रत – How to Start Ekadashi Vrat
सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु को अति प्रिय यह एकादशी का व्रत स्त्री या पुरुष कोई भी रख सकता है इसमे तनिक भी भेद नहीं। व्रत रखने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह एकादशी तिथि से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी के दिन से ही एकादशी व्रत के नियमों/Ekadashi Vrat Rules का सख्ती से पालन करें। भोग-विलास का त्याग कर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा चावल अथवा चावल से बनी वस्तुओं का भी सेवन न करें। व्रत का आरंभ सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है। यदि इस बीच व्रतधारी बताएं गए नियमों के अलावा अन्न ग्रहण कर लेता है तो व्रत अपूर्ण माना जाता है।
एकादशी व्रत विधि – Ekadashi Vrat Vidhi
Ekadashi Vrat Karne ki Vidhi: व्रतधारी को एकादशी तिथि(Ekadashi Tithi) के एक दिन पूर्व से ही भोग-विलास का त्याग कर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तामसिक भोजन, मांस और मसूर की दाल आदि वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिये।
- एकादशी की सुबह मल-मूत्र का त्याग कर दांतों और कंठ को स्वच्छ करने के लिए जामुन के पत्ते, नींबू, या फिर आम के पत्ते चबा लें चूंकि इस दिन वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है इसलिए वृक्ष से स्वयं गिरे पत्तों का ही प्रयोग करें और ऊँगली से कंठ साफ़ कर लें। यदि यह संभव न हो तो बारह बार कुल्ले करके कंठ को स्वच्छ कर लेवें।
- लकड़ी की दातुन, बाजारू मंजन या पेस्ट का उपयोग करना भी वर्जित है। इसके बाद स्नानादि से निर्वत्त हो मंदिर में जाकर भगवत दर्शन करके स्वयं गीता पाठ करें अथवा पुरोहितजी से श्रवण करें। साथ ही भगवान विष्णु का विधि सहित पूजन करें और उस दिन जो भी एकादशी तिथि हो (जैसा कि हमनें ऊपर सभी एकादशी तिथियाँ – List Of All Ekadashi Tithi दी हुई हैं।) उस एकादशी व्रत कथा का पाठ करें अथवा श्रवण कर भगवान जगदीश की आरती उतारें।
- प्रभु के समक्ष यह प्रण करें कि आज मैं किसी की निंदा नहीं करूँगा/करुँगी केवल हरि भक्तों का संग व हरि कीर्तन करूँगा/करुँगी। दुराचारी, दुष्ट, चोर व पाखंडी लोगो की संगती से दूर रहूँगा/रहूँगी। किसी का दिल नहीं दुखाऊँगा न ही किसी पर क्रोध करूँगा।
ऐसी विष्णु भगवान का स्मरण करते हुए प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।
इस दिन विष्णुसहस्रनाम, विष्णु भगवान के 108 नाम व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप और हरि कीर्तन करते दिन व्यतीत करें।
एकादशी व्रत के नियम – Ekadashi Fast Rules
व्रत के नियम : एकादशी तिथि से पूर्व दशमी के दिन से ही एकादशी व्रत के नियमों जैसे लहसुन-प्याज, मांस-मछली, चुगली आदि कर्मो का त्याग करते हुए नीचे दिए गए कुछ और अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए।
- व्रत से एक दिन पूर्व दशमी से ही चावल, लहसुन, प्याज, मांस व अशुद्ध भोजन का त्याग कर देना चाहिए।
- पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- इस दिन अपना व्यवहार और आचरण सही रखें।
- कम बोले और किसी की चुगली करने से खुद को बचाएं।
- व्रत के दिन पेड़ से स्वतः गिरे आम या जामुन के पत्तों को चबाकर अंगुली से कंठ साफ करें।
- घर में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए या ऐसे उपकरणों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे चींटी ( क्या चींटियाँ सुन नहीं सकती? जानिए चींटियों के बारें में रोचक बातें )आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय हो। इस दिन बाल भी नहीं कटवाने चाहिए न किसी की निंदा करनी चाहिए यदि भूलवश ऐसा हो जाता है तो उसी क्षण सूर्य भगवान के दर्शन कर श्रीहरि का पूजन करके क्षमा याचना करनी चाहिए।
- मधुर बोले अच्छा व्यवहार करें, अधिक न बोले, झूठ बोलने से बचना चाहिए।
- जुआ, शराब, हिंसा, निंदा, चोरी, मैथुन, क्रोध, झूठ व कपटादि अन्य बुरे कर्मो से दूर रहना चाहिए।
- एकादशी के दिन दान का विशेष महत्व है अतः सामर्थ्य के अनुसार इस दिन दान या अन्नदान अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत का भोजन – Ekadashi Vrat Food
व्रत में क्या खाए और क्या नहीं खाएं सम्पूर्ण जानकारी – दशमी के दिन से ही मांस, प्याज, मसूर की दाल, चावल का त्याग कर देना चाहिए। दशमी, एकादशी और द्वादशी में मांस, प्याज, लहसुन, मसूर, उड़द, चने, कोदो, शाक, शहद, तेल, काँसे के बर्तन और अधिक जल का सेवन न करें। व्रत के दिन बाजारू पेय, डिब्बा पैक फलों के रस, कोल्ड ड्रिंक्स, तला भोजन, आइसक्रीम न खायें। घर में निकाला हुआ फल का रस या फल अथवा दूध या जल का सेवन कर सकते है।
व्रतधारी में यदि सामर्थ्य न हो तो एक बार भोजन करें। यदि फलाहारी है तो शलजम, गोभी, गाजर, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। फलों में आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि का सेवन करना चाहिए। तुलसीदल के साथ प्रभु को भोग लगाकर ही कुछ ग्रहण करना चाहिए।
इस दिन दान दिया भोजन अथवा किसी के घर का भोजन भी नहीं करना चाहिए।
व्रत में खाने योग्य पदार्थ
- सभी प्रकार के फल
- चीनी
- कुट्टू
- आलू, साबूदाना, शकरकंद
- जैतून
- नारियल
- दूध
- सभी मेवें बादाम आदि और उनका तेल
- अदरक
- काली मिर्च
- सेंधा नमक आदि।
व्रत में वर्जित खाद्य पदार्थ (एकादशी व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए)
- सभी अनाज (जैसे मैदा, चावल, बाजरा, जौ, और उरद, मसूर दाल आटा) और उनसे बनी कोई भी वस्तु।
- मटर, छोला, दाल और सभी प्रकार की सेम, उनसे बनी अन्य वस्तुएं।
- बेकिंग पावडर, नमक, बेकिंग सोडा, कस्टर्ड और बाजारू मिठाईयां और मसालें जैसे कि मेथी, हींग, सरसों, सौंफ़ इलायची, इमली, लौंग और जायफल।
यदि इस दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाएं तो व्रत रखकर उस व्रत का फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए। प्रत्येक जीव को प्रभु का अंश समझकर किसी के साथ हिंसा अथवा छल कपट नहीं करना चाहिए। यदि इस दिन कोई आपका अपमान भी कर दें तो भी क्रोध न करें। संयम के साथ दया का भाव रखते हुए क्षमा कर दें। इस विधि से व्रत करने पर उत्तम फल की प्राप्ति होती है।