कुंडली में बारह भाव 12 राशियों से मिलकर बने हैं तो इसलिए आज हम एक नंबर (पहली राशी) मेष राशी से शुरू करते हुए बात करते हैं, मेष लग्न की कुंडली में योगकारक यानि शुभ ग्रहों की। लेकिन पहले आइए जानते हैं योगकारक ग्रह कहते किसे हैं ।
जातक की जन्म कुंडली में योगकारक ग्रह संतान सुख, धन, विवाह, नौकरी-व्यापार, सफलता जैसे कई तरह के शुभ फल अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को देता है। ग्रह जितना ज्यादा योगकारक होगा उतने ही ज्यादा शुभ फल देगा। योगकारक ग्रह का अर्थ सीधे शब्दों में कहे तो जहाँ बैठना, जहाँ दृष्टी डालना उस भाव के फल में वृद्धि कर देना। जो ग्रह जितना ज्यादा योगकारक होगा वह उस कुंडली के लिए उतना ही ज्यादा शुभ होता है।
किसी भी कुंडली में लग्न का स्वामी बाकि ग्रहों की तुलना में अति योगकारक और शुभ ग्रह होता है।।
जातक की कुंडली के पहले भाव में अगर 1 नंबर लिखा है तो वह मेष लग्न की कुंडली कही जाती हैं जिसके स्वामी मंगल देव हैं ।
– मंगल देव इस कुंडली के स्वामी यानि लग्नेश है तो ग्रहों के मित्र शत्रु स्थिति के अनुसार मंगल देव ने अपनी मित्रता निभाते हुए अपने मित्र ग्रहों को किस भाव का मालिक बनाया आइए जानते हैं ।
मंगल ग्रह
मेष लग्न में मंगल की मूल त्रिकोण राशि यानि मेष राशि पहले भाव में आती हैं और दूसरी साधारण राशि यानि वृश्चिक, आठवें भाव में आती हैं । प्रथम भाव और अष्टम भाव का मालिक होने के कारण इस कुंडली में मंगल ग्रह अति योगकारक ग्रह बने ।
चंद्र ग्रह
अपनी मित्रता निभाते हुए मंगल देव ने चंद्रमा को चौथे घर (भाव) का मालिक बनाया। चौथा भाव सुख स्थान हैं, माता गाड़ी, भूमि, वाहन, मकान का सुख और अपने जीवन में इन्सान जो भी सुख-सुविधा चाहता हैं वह सब इसी घर से विचार किया जाता हैं। इसलिए लग्नेश मंगल के बाद चंद्रमा इस कुंडली में अति योगकारक ग्रह हुए। लेकिन कुंडली में ग्रह की प्लेसमेंट पर निर्भर करता हैं कि वह कितना अच्छा फल देने में सक्षम होगा।
यदि योगकारक कहे जाने वाला ग्रह , कुंडली में अच्छे भाव में न बैठा हो तो वही ग्रह अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को सबसे ख़राब परिणाम देने वाला बन सकता है।
सूर्य ग्रह
मंगल देव सूर्य के अति मित्र है और दोनों ही अग्नि तत्व ग्रह हैं। साथ ही दोनों ग्रहों से जुड़े रत्न भी एक ही अंगुली में धारण किए जाते हैं। इस कुंडली में सूर्य को पांचवे घर का मालिक बनाकर सूर्य देव को कुंडली के त्रिकोण में जगह दी हैं । पांचवा घर जन्मपत्री का त्रिक भाव कहलाता हैं।
संतान सुख, पेट, अचानक धन लाभ, प्रेम सम्बन्ध, जातक का आत्मविश्वास, दिमाग, विल पॉवर आदि का विचार इसी पंचम भाव से किया जाता हैं।
बृहस्पति ग्रह
ग्रह मैत्री चार्ट अनुसार मंगल देव की देवताओं के गुरु बृहस्पति से मित्रता हैं । जिस कारण इस लग्न में गुरु 9 वें और 12वे भाव के स्वामी बने।
नवम भाव कुंडली का त्रिकोण कहलाता हैं इस भाव से धर्म को मानना, पिता, विदेश यात्रा, हायर तो हायर रिसर्च, भाग्य आदि का विचार किया जाता हैं ।
– बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि (धनु राशि) कुंडली में मूल त्रिकोण भाव (नवम भाव) में आने के कारण इस लग्न कुंडली में गुरु ग्रह सदैव अच्छा फल देने के लिए बाध्य हो गए ।
– इसके अतिरिक्त गुरु की साधारण राशि( मीन राशि ) को कुंडली के 12 वे भाव का स्वामित्व मिला।
– द्वादश भाव कुंडली का व्यय भाव भी कहा जाता हैं । जेल यात्रा, अस्पताल के खर्च, विदेश सेटलमेंट आदि का विचार इसी भाव से किया जाता हैं । इस लग्न में बृहस्पति देव भी अति योगकारक ग्रह बने।
इस तरह मेष लग्न की कुंडली में मंगल ( स्वामी: प्रथम भाव और अष्टम भाव), चंद्रमा ( स्वामी: चतुर्थ भाव), सूर्य ( स्वामी: पंचम भाव), बृहस्पति ( स्वामी: नवम भाव और द्वादश भाव) योगकारक ग्रह बने। अगली पोस्ट में आप जान सकते हैं मेष लग्न में मारक ग्रह के बारे में ।
ध्यान दे
- योगकारक कहे जाने वाला ग्रह यदि कुंडली में अपनी मित्र राशि, स्वयं राशि, कारक भाव या फिर शुभ भाव में विराजमान हैं । तभी अच्छा फल देने में समर्थ होगा यदि ग्रह की प्लेसमेंट बुरे भाव या नीच राशी में हो जाती है तो ऐसी स्थिति में वह कभी भी अच्छा फल देने में सक्षम नहीं हो पता। जब तक की उस पर ज्योतिष का कोई अन्य नियम लागू न होता हो।
- योगकारक ग्रह यदि अस्त अवस्था में है या बलाबल कम हैं या फिर पाप प्रभाव में हैं तो ग्रह से जुड़े ज्योतिषीय उपाय करके ही फल प्राप्त किया जा सकता हैं ।